वो महकती ज़ुल्फ़ घनेरी कजरे गहरे नयन,
सुर्ख गुलाबी होंठ धवल चांदनी गोरा बदन !
तारों भरी रात मलयज महकी बहती बयार,
उसकी पायल की रुनझुन वीणा की झंकार!
कस्तूरी मृग सा महका बदन बहका मदन,
नदिया सी बलखाती लचकती कटि तन!
स्वाति नक्षत्र बूंद चातक की बुझती प्यास,
अनिंद्य सौंदर्य उन्मुक्त रेशमी केस विन्यास!
चारु चन्द्र की आभा चितवन चित चकोरी,
उन्मीलित नयन अल्हड़ चुलबुल किशोरी!
- रचनाकार गोविन्द नारायण शर्मा