इतरा रहा है गेसुओं की खुशबू पाकर खत तेरा,
गेसुओं को खुला रख लिखा होगा खत तूने!
चाय सी गुनगुनी गर्माहट है तेरे इन लबों में ,
जाड़े का मौसम हैं जरा चूम लूँ इन लबों को!
कभी पियेंगे तुम्हारे हाथ की बनी गरम चाय ,
सुना है इलायची होंठो से फोड़ कर डालती हो !
तेरे सुर्ख लाल होंठो के नशे में खो जाऊँ ,
तुझको आँखों से अपने बेहद करीब पाऊँ !
रखने दे आज लब अपने नशीले लबों पर ,
तेरे होंठो से छूकर मैं तेरे नशे में हो जाऊँ!
रचनाकार : गोविन्द नारायण शर्मा