@ गोविंद नारायण शर्मा
अभिमान में सब गया धन वैभव और वंश ,
न मानो तो देख लो रावण कौरव और कंस!
ईश दाता नही विपत्ति का वो विदारण हार,
विप्र अजामिल गजराज को ग्राह से उबारो !
कर्मा बाई रो खीचड़ शबरी के झूंठे बेर खाये,
दुर्योधन के मेवे त्यागे साग विदुर घर खाये!
ब्रज की गोपियन की छाछ पर रास रचायो,
द्रोपदी लाज राखी दुर्वासा कोप से बचायो!
केवट के भाग सजनी राम सुरसरि तट आये,
कठोती चरण पखारी सपरिवारु नाव चढाये !
सुनी नाम विप्र सुदामा सिंहासन छोड़ आये! पानी परात छुयो नही नयनन जल पग धोये!
बाल सखा मिले सुधी भूले द्वारिका नाथ जी,
तीन मुठ्ठी तंडुल खाय त्रिलोकी राज निछावर जी!
भक्त नरसी मेहता टेर लगाई प्रभु सुनी धाये, भात भरण नानी रो राधा रुक्मण सङ्ग आये!
भक्त प्रह्लाद मान रखियो नरसिंह रूप धरयो,
राजा बलि को दम्भ हरण वामन रूप बनायो!