द्रोपदी मुर्मू आदिवासी समाज से संबंध रखने वाली एक मध्यमवर्गीय पारिवारिक सदस्य हैं।एक साधारण महिला ने किस प्रकार देश के सर्वोच्च व प्रथम नागरिक के पद पर पहुंचने तक का सफर तय किया है।
द्रोपदी मुर्मू का संबंध भले ही एक साधारण समाज और मध्यम परिवार से रहा हो,लेकिन उनका कृतित्व, व्यक्तित्व और जीवन के प्रति उनका दृष्टिकोण असाधारण है। जिन्होंने अपने जीवन में न जाने कितने उतार-चढ़ाव देखे। उनके जीवन की कहानी पूरे समाज के लिए, विशेषकर महिला वर्ग के लिए एक प्रेरणादायक और आदर्श है।
- द्रौपदी मुर्मू का प्रारंभिक जीवन
द्रोपदी मर्मू का जन्म 20 जून 1958 को उड़ीसा के मयूरभंज जिले के बैदापोशी नामक गांव में हुआ था ।इनके पिता का नाम वीर जी नायडू और माता का नाम गुड्डू है । पढ़ाई में विशेष रूचि रखने वाली द्रोपदी मुर्मू ने सन 1979 में भुवनेश्वर उड़ीसा के (महिला कॉलेज से ) रमा देवी महाविद्यालय से उन्होंने स्नातक किया था ।
- क्लर्क व असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में
महाविद्यालय तक के शिक्षा पूरी करने के पश्चात उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत एक क्लर्क के रूप में की ज्ञात हो कि उन्होंने उड़ीसा सरकार के सिंचाई विभाग में एक क्लर्क के रूप में कार्य करते हुए अपने जीवन की शुरुआत की थी। उन्होंने कुछ समय पश्चात अपनी नौकरी बदल ली और उड़ीसा के एक सरकारी महाविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर रहकर अध्यापन किया।
- जिंदगी के उतार चढ़ाव में अपनोंं को खोया
द्रोपदी मुर्मू ने अपने राजनीतिक जीवन में अभूतपूर्व सफलता हासिल की है लेकिन निजी जीवन में बार-बार उनको परीक्षा के दौर से गुजरना पड़ा। सन 2009 में सिर्फ 25 साल की उम्र में उनके बेटे की मौत हो गई अचानक बेटे की मृत्यु हो जाने पर मानो उनके जीवन में तूफान आ गया हो और डिप्रेशन में चले गए। अपने एक बेटे की मृत्यु के 4 वर्ष बाद सन 2013 में एक सड़क दुर्घटना में अपने दूसरे बेटे को भी खो दिया, जिससे द्रौपदी मुर्मू अपने व्यक्तिगत जीवन में बिल्कुल टूट चुकी थे । उन्होंने अपनी समस्या का समाधान आध्यात्म में ढूंढने का प्रयास किया और यह ब्रह्मकुमारी संस्थान के संपर्क में आए और अपने आप को धर्म कर्म के कार्यों में लगा लिया।
इनके जीवन में समस्याओं का अंबार यहीं नहीं रुका अपने दूसरे बेटे की मृत्यु हो जाने के बाद कुछ ही दिनों में इन्होंने अपनी मां को खो दिया और फिर अपने भाई को जीवन में एक के बाद एक हुई मौत ने इनको तोड़ कर रख दिया लेकिन द्रोपदी मुर्मू ने हिम्मत नहीं हारी।
इन सब घटनाओं से उभरने का प्रयास कर ही रहे थे कि एक वर्ष बाद ही इनके पति ने भी इस संसार सागर से मुंह मोड़ (मोत हो गई)लिया।
- द्रोपदी मुर्मू का राजनीति में प्रवेश
1977 में उनका राजनीति में प्रवेश व मयूरभंज के रंग रायपुर से पार्षद चुने जाने से शुरुआत हुआ। इसके पश्चात द्रोपदी मुर्मू उड़ीसा से दो बार विधायक बनी और 2000 से 2004 तक वह राज्य सरकार में मंत्री भी रही तथा 2015 में उन्हें झारखंड का राज्यपाल बनाया गया।
- झारखंड की पहली महिला राज्यपाल बनी
द्रोपदी मुर्मू झारखंड की 15वीं राज्यपाल और पहली महिला राज्यपाल है। जिन्होंने अपना पद 18 मई 2015 को ग्रहण किया था। ज्ञात हो कि यह पहली उड़ीसा महिला नेता है, जिन्हें किसी राज्य की राज्यपाल बनाया गया था जो इनके राजनीतिक जीवन की एक बहुत बड़ी सफलता थी और यह सफर लगातार आगे चलता गया और देश के राष्ट्रपति उम्मीदवार बनने तक पहुंचा।
हाल ही में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली वाली एनडीए ने आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू को एनडीए की तरफ से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया था ।ज्ञात हो कि इनके विपक्ष में यशवंत सेना राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार है।
ध्यातव्य’- 18 जुलाई 2022 को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए ने द्रौपदी मुरमू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया है जो आदिवासी समाज महिला वर्ग और पूरे समाज के लिए एक अनुकरणीय मिसाल साबित होगी ।
- इस पद पर आजाद भारत में जन्म लेने वाले पहले व्यक्ति
द्रोपदी मुर्मु देश की वह पहली राष्ट्रपति होगी जिनका जन्म आजाद भारत में हुआ हो और यह देश के लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक बहुत बड़ा परिवर्तन होगा। ज्ञात हो कि इससे पूर्व देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के ऐसे पहले प्रधानमंत्री है जिनका जन्म आजाद भारत में हुआ है।
स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह पहला अवसर होगा जब देश के दो संविधानिक पदों,राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जैसे पदों पर आजादी के पश्चात जन्म लेने वाले व्यक्ति पदासीन होंगे।
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