हमारा मस्तिष्क विचारों की खान है  विचार तो विचार होते है  । चले आते हैं दिन हो या रात सुबह हो या शाम यह तो बस चले आते हैं  ना इन को समय का पता  ओर ना इनको स्थान का पता बस ये तो  चले आते है आप चाहे या ना चाहे बस यह तो चले आते हैं आखिर विचार हैं और विचारों पर किसका बस है कुछ लोग उन विचारों को आत्मसाकर लेते हैं । समाज के आसपास के वातावरण से किसी भी घटना से कुछ लोगों की संवेदनाएं  जाग उठती है  विचारों के बादल  उमड़ने लगते हैं  विचार ग्रहण करके उनको विचारों को अपने शब्दों में पिरोने की  कोशिश करते हैं ।
न मैं किसी के खिलाफ लिखता हूँ,न मैं किसी का गुणगान लिखता हूँ       

जिंदा है मेरी कलम का ज़मीर…..मैं सिर्फ मन के भाव लिखता  हूँ


एक मासूम की मसुमियत…..  

विविधता में एकता वाला  हमारा देश  आध्यात्मिक  और नैतिक संस्कारों वाला  देश रहा है  हजारों लाखों वर्षों से  देश में यही परंपरा  चली आ रही है धर्म और आध्यात्मिक हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा है । मैं तो सिर्फ यही कहूंगा  कि ..यहां के हर कण में अध्यात्म छुपा है,हर प्राणी में  एक विश्वास छुपा है ।इसी विश्वास के आधार पर हमारी आध्यात्मिक संस्कृति  हमारे जीवन का एक अहम हिस्सा बन गया है  व्यक्ति जब भी किसी प्रकार की समस्या में होता है  जब भी कोई नया कार्य शुरू करता है  तो वह  अपने घर के बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लेता है तथा  किसी भी  मंदिर में  जाकर  उस परमपिता परमेश्वर उस परम शक्ति से  हाथ जोड़कर यही प्रार्थना करता है कि है ईश्वर उन्हें इस संकट से उभर है या उसे इस कार्य में सफलता प्रदान करें यही हमारे अध्यात्म का मर्म  बिंदु है।
  जीवन में जाने अनजाने ऐसे कहीं दृश्य हमारे सामने आ जाते हैं जो हमें हैं सोचने को मजबूर कर देते हैं मैंने देखा की एक दिन  एक अबोध बालक  जो शायद किसी साधरण परिवार से हो जिसे न तो अध्यात्म का ज्ञान है मैं किसी दुनियादारी का लेकिन वह भी इस बात का एहसास जरूर करता है कि जब भी कोई व्यक्ति भगवान के सामने हाथ फैला कर कुछ मांगता है कुछ अर्ज करता है ईश्वर उसकी इच्छा पूरी करता है इसी सोच को लेकर एक दिन एक वाकिया  मेरे सामने आया कि एक अबोध बालक एक मंदिर जहा सेकड़ो लोगो की भीड़ थी उस भीड़ में  अपने छोटे छोटे हाथ जोड़ भागवान से अर्ज कर रहा था जो सहज ही हर किसी का ध्यान सहज ही अपनी ओर  आकर्षित कर रहा था।

 मेने देखा, उसकी अर्ज को , मेंने महसूस करने की कोशिश की उसके भाव को सेेमझने की  उसके भाव को  शायद वो कह रहा हो ,वह मांग कर रहा हो  दुआ कर रहा हो  किसी अपने की खुशहाली , अपनी पीड़ा ,दर्द  को हरने की  वो कुछ  मांग रहा हो उस परवददिगार से.. मैने उसके भाव को  कुछ यूं शब्दों में पिरोने की कोशिश की है..

हम पे दया कर गले से लगाओ,
हमारी खता क्या है जरा हमे बताओ,
ले लो शरण में हमे अब इतना न रुलाओ,
हमारी खता क्या है जरा हमे बताओ”

हे मा मुझ पर तेरा ऐतबार क्यों नहीं होता
तेरा मुंझ दुखियारे  पर उपकार क्यों नहीं होता
तेरी रहमत के चार मीठे बोल का भूखा हूं मैं
ये दास तेरे आशीर्वाद का हकदार क्यों नहीं होता

उस नन्ने बालक  के  मन के भाव को समझ कर मेरे मन की संवेदना भी जाग उठी  और  मेरे उठे कि के साथ इस बालक की प्रार्थना कबूल हो  । है परवरदिगार दुनिया से लाचारी गरीबी बेबसी तू  मिटा दे एक खुशहाल दुनिया  ऐसी  भी तू बना दे”
इन्सान की इंसानियत ………
इंसान का सर्वोत्तम गुण और विशेषता होती है उसकी इंसानियत  संवेदनाओं को समझने और एहसास करने की क्षमता लेकिन आज के दौर में इनकी बात करना मानो हास्यस्पद लगता है । अकसर कहा जाता था इंसान भले मर जाए लेकिन उसकी आत्मा जिंदा रहती है। ये कैसा वक्त आ गया इंसान भले ही जिंदा हो पर उसकी आत्मा मर जाया करती हैं ।वह अपनी इंसानियत,आत्मीयता,मानवता कों पहले ही मार देता है । इसी मरती आत्मीयता मरती हुई इंसानियत मरती हुई मानवता को आधार बनाकर कुछ पंक्तियां, कुछ भाव शब्दों का रूप लेकर कागज पर उकेरने का  एक छोटा सा प्रयास। विश्वास करता हूं इन पंक्तियों को पढ़कर शायद आपकी भी संवेदना जाग उठे ।
मेने मौसम तो  मौसम…. 
मैंने इंसान को बदलते देखा है 
मैंने इंसान को ही नहीं…….
इंसानियत को भी मरते देखा है
गिरगिट क्या करें बेचारे ……
मैंने इंसान को भी रंग बदलते देखा है 
मोम क्या करे बेचारी ……इंसान को भी पत्थर दिल बनते देखा है 
सुना है आत्मा कभी मरा नहीं करती …..
मैंने इंसान की आत्मा को भी मरते देखा है

मैंने इंसान ही नहीं….. ….
इंसानियत को भी मरते देखा है 

कहां मिलती है रिश्तो में अब वह मिठास 
मैंने चंद स्वार्थ के कारण रिश्तो को तोड़ते देखा है

लुटाया करते थे लोग प्रेम……
मैंने इंसान को इंसानियत को लूटते देखा है

जिंदगी के सफर में …..
आज की भागदौड़ की इस दुनिया में  जहां हर कोई  दौड़ रहा है एक अनजानी सी मंजिल की तरफ  इस मंजिल के रास्ते उबड़ खाबड़  भी हो सकते हैं और  रास्ते आसान भी हो सकते हैं  । इस अनजाने सफर में  मिलते हैं कई  चिर परिचित, कुछ बेगाने कुछ हमसफर मिलते हैं। सब अपनी अपनी बात अपने अपने एहसास , अपने कुछ  अच्छे ,कुछ बुरे  अनुभव , अपने चिर परिचित लोगों को सुनाते  हैं हैं । कुछ अजनबी भी ना चाहते हुए भी सुन लेते हैं ।  करते हैं कुछ एहसास करते हैं और कुछ भाव को समझने का प्रयास करते हैं। क्या किया जाये मानव  प्रवृत्ति है ही ऐसी । 

 इस अनजाने सफर में मेरे दिन की शुरुआत भी हर  रोज एक सफ़र के साथ होती है । इस सफ़र में कुछ जाने कुछ अनजाने लोग मिलते है नही चाहते हुए भी कुछ सुनी कुछ अनसुनी बाते कानो में भी पड़ती है । ऐसा ही वाकिया एक दिन हुआ की एक मुसाफिर कुछ मार्मिक शब्दों के साथ किसी से फ़ोन पर वार्ता कर रहा था कुछ शब्द जाने अनजाने  में मेरे कानो में भी पड़े जो मेरे कानो से मेरे दिल  की गहराइयों तक भी पहुचं  गए । शायद वह अपने किसी मित्र  या परिचित को समझा रहा था उससे बात कर रहा था ।  वह व्यक्ति और उसकी  बाते दोनों ही मेरे लिये अजनबी  और अनजानी सी थी । उसकी बाते और उसके भावो को मेने शब्दों में पिरोने की छोटी सी कोशिश की है…….
“क्यों है तू मुझ  से खपा,क्यों हो रहा है तू मिझ से दूर
नही चाहा कभी तेरा बुरा,फिर क्या है मेरा कसूर
मानो या न  मानो ,हु तेरा अपना यूं मुझ से तू मुहँ न मोड़
गुजारे साथ पलो तू याद कर, रिश्तों को तू यूं न तोड़
चाहता हूँ चहरे पर तेरे हंसी ,स्वार्थ से तू रिश्तों को न तोल 
खुशी को तेरी न्योछावेर कर दू जिंदगी,तू जरा मुहँ से तो बोल
“बस यही तो जिंदगी की हकीकत है ।  ।

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