इतिहास और पौराणिकता की दृष्टि से बघेरा ओर जैन धर्म का संबध
केकड़ी जिले का बघेरा कस्बा पौराणिकता, आध्यत्मिकता, ऐतिहासिकता के दृष्टिकोण से अपनी अलग ही पहचान रखता है । बघेरा में न केवल वैष्णव धर्म/ सम्प्रदाय वरन जैन धर्म/ सम्प्रदाय के दृष्टिकोण से भी अपनी अलग ही पहचान रखता है। खुदाई में अनेक जैन मूर्तियों का मिलना इसका सबसे बड़ा प्रमाण है । खुदाई में मूर्तियो के मिलने का दौर आज भी है जारी है.. मानो बघेरा की धरा से प्रतिमाये निकलना एक परंपरा हो । यहाँ कस्बे के सदर बाजार में जैन तीर्थंकर शांतिनाथ का भव्य जैन मंदिर स्थित है जिसमे विशालकाय और अनुपम कलाकृति की पर्याय प्रतिमाये अपना इतिहास खुद ब खुद बयां कर रही है ।
गांव के लिये सबसे बड़े गौरव की बात तो यह है कि इस मंदिर में स्थापित प्रतिमाये बघेरा की पावन धरा की कोख़ से ही वर्षों पूर्व निकली हुई है । कस्बे का यह भव्य मंदिर 11वीं और 12वीं शताब्दी में ग्राम बघेरा में स्थित मंदिरों की नष्ट होने से पूर्व जमीदोज की गई मूर्तियों के सुरक्षित की गई जैन तीर्थकरो की है।
इसके अतिरिक्त मंदिर में पदमासन अवस्था की प्रतिमाये और कुछ अन्य प्रतिमाये जो वर्तमान में मंदिर में स्थापित है और शोभा बड़ा रही ये मूर्तियां सन 1980 में कस्बे में खुदाई के दौरान ही प्राप्त हुई है जो संगमरमर की बनी हुई है इनके पश्चात भी धरती की कोख़ से मूर्तियां निकलना जारी रहा.. जिन्हें शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में पुनः विधि विधान के साथ 1982 में पंचकल्याण महोत्सव /विधि विधान के साथ स्थापित किया गया था ।
- बघेरा का इतिहास ओर जैन धर्म
प्राप्त जानकारी के अनुसार बघेरा में भगवान वराह की मूर्ति की भांति ही ये जैन मूर्तियां भी लगभग 10 वीं सदी के आसपास के वैभव का प्रतिनिधित्व करती है । पौराणिकता के दृष्टिकोण से महाभारत काल की ऋषि परंपराओं , गुप्तकाल के मंदिरों और चौहान काल के शिव मंदिर की परंपरा में ही चौहानों का जैन धर्म के प्रति रुझान दृष्टिकोचर होता है । - इतिहास प्रसिद्ध बिजोलिया के सन 1226 ईसवी के शिलालेखों में सर्वधर्म समभाव को परिलक्षित करने वाले चंद्रमा के समान दो जैन मंदिरों का उल्लेख है और ये शिलालेख चौहान राजाओं की वंशावली को प्रकट करते हैं । इसमें ” यो चि कर चंद्र श्रुचि प्रामाणो व्याघ्र कदो जिन महाराणी ” व्याघ्रपुर में दो जैन मंदिर चंद्रमा के समान सुंदर है और यह व्याघ्रपदपुर आज का बघेरा कस्बा ही है ऐसा हम नही वरन अनेक धार्मिक,पौराणिक और ऐतिहासक ग्रंथ प्रमाणित करते है । बघेरा में खुदाई और मकान निर्माण के लिये खोदी जानी वाली नींव और बघेरा के दक्षिण दिशा में डाई नदी में समय समय पर जैन प्रतिमाओं का मिलना इस बात को बल प्रदान करती है कि बघेरा न केवल आज वरन इतिहास में भी जैन धर्म का केंद्र रहा है। बघेरा में खुदाई के सरन जो जैन प्रतिमाएं जमीन से खुदाई में प्राप्त हुई है उनमें से लगभग आधी प्रतिमाये श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में स्थापित है और जो तोड़ी जा चुकी है ये यहाँ वहां शिलाखंडों के रूप में बिखरी पड़ी हुई यह सब हमारे अतीत की सुंदर गाथा बयां कर रहीं है या अजमेर स्थित राजकीय संग्रालय की शोभा बढ़ा रही है । मंदिर की बात करे तो जैन धर्म से सम्बंधित एक मंदिर केकड़ी टोडा राज्य राज मार्ग पर पहाड़ी पर स्थित जिसके अवशेष रूप में तीन जैन प्रतिमाएं पहाड़ी की चट्टानों पर ही बनी हुई जो आज भी विद्यमान है । विशालकाय शिलाखण्ड पर उत्कीर्ण ये प्रतिमाये सहज भी हर किसी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर ही लेती है ।
खुदाई में प्राप्त जैन प्रतिमाओ का रहा है इतिहास
बघेरा एक पुरातात्विक कस्बा रहा है यहाँ धरती को कोख़ से निकली अनेक मूर्तियां, मृद भांड, सिक्के, शिलालेख, मन्दिरो, मकानों के अवशेष आदि खुदाई से प्राप्त पूरा सामग्री से अनुमान होता है कि यह नगर धार्मिक दृष्टि से शिव,शक्ति ,वैष्णव,वाममार्गी, बौद्ध एवं नाथ और जैन धर्म/ संप्रदाय के मानने वालों का तीर्थ स्थल रहा होगा । शांतिनाथ मंदिर में स्थित मुख्य प्रतिमा एक भव्य विशाल प्रतिमा जो संगमरमर की है वह करीब 7.6 फीट ऊंची है इस पर लिखित स्तुति से ज्ञात होता है कि इस स्थान पर 1150 ई में किसी अन्य स्थान पर भव्य मंदिर में स्थापित की गई थी कालांतर आक्रांताओ से बचाने के लिए इसे डाई नदी के किनारे एक टीले में दबा दिया गया था ।खुदाई में मिलने के पश्चात इसे छोटे से मंदिर में स्थापित कर दिया गया था। उसके पश्चात अन्य मूर्तियां भी स्थापित किया जाने लगी सभी मूर्तियां मुख्य मंदिरों में स्थापित है इसके अलावा कला , वैभव और आकार,की दृष्टि से बहुमूल्य प्रतिमाएं है जिनका वर्णन किया जाना संभव नहीं है । शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर को वर्तमान में भव्य रूप दिया जा चुका है लेकिन मंदिर में स्थापित प्राचीन प्रतिमाये आज भी अपना इतिहास बयां कर रही है । इस मंदिर के सामने ही नवनिर्मित भगवान आदिनाथ का मंदिर भी है । वर्तमान में इस मंदिर को भी एक भव्य रुप दिया जा चुका है,जिससे त्रिकाल चौबीसी की प्रतिमा स्थापित यह मंदिर भी जैन समाज के लिए आस्था का केंद्र है ।
अजमेर संग्रहालय और बघेरा की जैन प्रतिमाएं
जैन अतिशय क्षेत्र में ग्राम बघेरा का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है आज भी यहां खुदाई के दौरान जैन प्रतिमाएं प्राप्त होती है पूर्व में प्राप्त जैन मूर्तियां आज भी कई देवी देवताओ की मूर्तियों के साथ साथ जैन मूर्तियां भी अजमेर स्थित संग्रहालय की शोभा बढ़ा रही है जहां पर अनेक जैन प्रतिमाएं कलाकृति का एक अनुपम नमूना है । इससे साबित होता है यह बघेरा कस्बा जैन धर्म के दृष्टिकोण से भी एक तीर्थ के रूप में जाना जाता रहा है ।
जैन अतिशय क्षेत्र के रूप में रखता है पहचान
धर्म और आध्यत्मिकता का केंद्र बघेरा आज भी न केवल राजस्थान बल्कि दूसरे राज्यों से भी हजारों की संख्या में जैन धर्म के भक्तगण इस पवित्र धरती, जैन मंदिर में भगवान शांतिनाथ ,आदिनाथ का दर्शन करने आते रहते हैं । आज भी बघेरा एक जैन तीर्थ के रूप में अपना महत्व रखता है । आश्चर्य की बात है कि न केवल जैन धर्म के लोग बल्कि अन्य धर्म के लोग भी इन प्रतिमाओं के दर्शन और अवलोकन करने जैन मंदिर में आते है ।