अजमेर जिले के अंतिम छोर पर बसे हुए ऐतिहासिक, आध्यात्मिक, पौराणिकता का पर्याय बघेरा कस्बे में विश्व प्रसिद्ध विष्णु के वराह अवतार का प्रसिद्ध वह मंदिर जी कि वराह सागर किनारे स्थित है । इसी वराह सागर के किनारे और भगवान वराह के मंदिर के समीप ही एक प्राचीन मंदिर जिसकी कलाकृति, जिसकी निर्माण शैली अपने आप में एक अनुपम मंदिर है। इस मंदिर को प्राचीन समय से ही जगदीश का मंदिर के नाम से जाना जाता रहा है। इस मंदिर में भगवान जगदीश की श्यामवर्णीय पाषाण की बहुत ही सुंदर प्रतिमा विराजमान है जो हर किसी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर देती है। बताया जाता है कि इस मंदिर कुछ भाग आक्रांताओ द्वारा क्षतिग्रस्त कर दिया जिस प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्धार और निर्माणाधीन है ।
कालांतर में इस कस्बे में धाकड़ समाज का अपार जनसमूह रहता था किवदंती समाज बंधुओं की माने तो यहां स्थित सती माता से श्रापित होकर आसपास के गांव में रहते हैं । पुरातन मंदिर धाकड़ समाज का ही था इसका ज्वलंत उदाहरण यहां जन्म एवं विवाह के उपरांत अपने इष्ट देवता एवं सती माता को धोक देने का विधान आज भी है। भगवान जगदीश में मंदिर और समाज के सती मंदिर पर आज भी राजस्थान से बाहर के काफी सामाजिक बंधु आकर अपना शीश झुकाते हैं ।
वर्तमान में प्राचीन मंदिर के उन खंडों पर विशाल दुबे मंदिर का निर्माण किया जा रहा है बताया जाता है कि उक्त भव्य मंदिर धाकड़ समाज द्वारा ढूंढाड क्षेत्र के करीब 60 गांव के समाज बंधुओं के सहयोग से बनाया जा रहा है। इस कारण मंदिर में विराजमान भगवान जगदीश अपना मंदिर कुछ दिनों के लिए छोड़कर अपने बड़े भाई भगवान बलभद्र / बलदाऊ जी के मंदिर में निवास कर रहे है । भगवान अपने भ्राता बलदाऊ के साथ मंदिर निर्माण का कार्य पूर्ण होने तक प्रवास करेंगे । पिछले दिनों भगवान जगदीश के प्रतिमा को बडी ही धूमधाम से गाजे-बाजे के साथ परंपरागत शैली में बेल गाड़ी में बैठा कर गांव का भ्रमण कराया और पास में ही भ्राता बलदाऊ के मंदिर में स्थापित किया है मंदिर का कार्य पूर्ण होने पर वही पारंपरिक तरीके से भगवान जगदीश की प्रतिमा को वापस अपने नवनिर्मित मंदिर में ही पहुंचाया जाएगा