राहगीर को तो चलते रहना है चलते रहो राह पर आगे बढ़ते रहना है–
एक वह दोर था जमाना था बचपन का जब स्कूल में पढ़ा करते थे तब गुरु जी हमें गाय पर निबंध लिखने को कहा करते थे वह निबंध पूर्णतया काल्पनिक हुआ करता था बड़ा अजीब वक्त था अब कैसा वक्त आ गया हमें एक कुत्ते पर निबंध लिखना पड़ रहा है यह भी पूर्णतया उस प्रकार काल्पनिक है जिस प्रकार मेमना ओर भेड़िया चालाक लोमड़ी शेर चूहा की कहानी है बता दूं इस कहानी का किसी से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कोई संबंध नही है न किसी कुते से ओर न किसी कुते पालने वाले से ये पूर्णतया काल्पनिक है।
अक्सर सुना है, बचपन से सुनते भी आ रहे हैं कि कुत्ता सबसे अधिक वफादार जानवर होता है चलो मान लेते हैं आपकी बात और कहावत को कि कुत्ते सबसे अधिक वफादार होते हैं लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह कुत्ता किस कैटेगरी का है क्योंकि सामान्यतया कुत्ते दो प्रजाति के होते हैं ।
प्रजाति का मतलब यहां पर नस्ल से नहीं यहां पर तात्पर्य यह कि वह कुत्ता किसी का पालतू कुत्ता है या आवारा केटेगरी का कुत्ता। अब जो बात वफादारी की की जाती है पालतू कुत्ते से तो अपेक्षा की जा सकती है वह वफादार होता भी है लेकिन एक आवारा कुत्ता जो गली गली में घूमता फिरता रहता है मुह मारता रहता है न उसमे अपने मालिक के सिखाये हुए संस्कार होते है न कोई सलीक़ा जिसका कोई वजूद नहीं है होंगे भी कैसे आखिर आवारा जो रहा उससे क्या अपेक्षा करें
जब राह चलते मिला एक कुत्ता
अब राह चलते एक राहगीर को एक कुत्ता गले पड़ गया था हर रोज रोज अपनी दुम हिलाते हुए उस राहगीर के तलवे चाटना शुरु कर देता था यह दौर काफी समय तक चलता रहा आखिर में उस राहगीर ने उस पर तरस खाकर उस पर विश्वाश करके उसे कुछ खाने को डालना शुरू कर दिया धीरे धीरे आवारा कुत्ते को थोड़ी अहमियत मिल गई दिन ब दिन उसके नखरे शुरू हो गए चलो कोई बात नहीं कुत्ता है नखरे तो करेगा नखरे सहन करता गया लेकिन दिन ब दिन उसके नखरे बढ़ते ही गये आखिर कब तक उसके नखरो को सहन किया जाए । एक दिन राहगीर ने उसके नखरो को सहन करना क्या बंद कर दिया उसने भोकना ही शुरु कर दिया एक दिन तो गजब हो गया काटने को दौड़ पड़ा भोकेगा ओर काटने को भी दौड़ेगा क्यो नही आखिर वह भी कुत्ता था और वह भी आवारा अपनी जात पर आना ही था।
अब एक कहावत ऐसी भी सुनी है खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे ये कहावत चरितार्थ हो रही थी वह आवारा कुत्ता खंबा नोच नोच कर थक गया अब कहीं जाता कीचड़ में डूबकी लगाकर आता और फड़ फड़ कर के अपने दामन के छींटे उछालने का प्रयास करता अब उनको कौन समझाए जिनके छीटे लगेंगे वह तो धुल जाएंगे छीटे कपड़ों पर है दामन पर नहीं लेकिन उसका तो पूरा दामन ही दलदल में है दूसरों पर कीचड़ उछालने के लिए दलदल में डुबकियां लगाने के बजाय अगर वह किसी पवित्र तालाब में जाकर डुबकी लगाए तो शायद उसके पाप धुल जाए कुत्ता पन थोड़ा कम हो जाए।
कहां जाता है कि पागल कुत्ते को गोली मार दी जाती है लेकिन नहीं कुत्ते को मारने का पाप नहीं लेना चाहिए उसे कुत्ते के जमारे में उसी दलदल में डुबकी लगाने के लिए पागल कुत्ते को पागल ही बना रहा कर घूमने देना चाहिए क्योंकि ऊपर वाले ने जो कर्मो में यही लिखा हैं उसकी नियति ही ऐसी है उसका फल तो भोगना ही पड़ेगा उसे ।
बस अपनी राह पर चलते रहो
अब राहगीर का क्या वह तो कल भी सीना तान कर गलियों से निकला करते थे और आज भी कल भी ऐसी तरह निकलेंगे भोकने वाले तो भोकेंगे उसकी नियति ही ऐसी है राहगीर को तो बस अपनी राह पर चलते रहना है आगे बढ़ते रहना है।
“न किसी के प्रभाव में जियो न किसी अभाव में जियो यह जिंदगी है आपकी अपनी इसे अपने स्वभाव से जियो”
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