देख सखी उमड़ घुमड़ बदरा आये ,
लगे यू ज्यों परदेशी पिया घर आये !
सखी बिजुरियाँ चमक रही घन माही,
साजन ढूंढ रहे अपनी प्यारी सजनी !

उमड़ घुमड़ बदरा बरखा बरसाए ,
ताल तलैया सब जल से भर जाए!
नदिया अल्हड़ सी लहराती जाए ,
पिया मिलन ज्यों उन्मादी सजनी !

नन्हे मुन्ने कागज की कश्ती तेराये,
मयूरा पंख फैलाकर नाचे मस्ती में !
नन्ही नन्ही शबनम बुन्दे बटोर लाये,
श्याम घटाएं रिमझिम मेहा बरसाये!

धरा ने ओढ़ी हरित धानी चुनरिया,
सब के मन को बहुत ही हरषाए !
मानो गोरी ओढ़े सतरंगी लहरिया,
वन उपवन में नव कलियां खिली!

सावन में झूला झूलावे वन माली ,
राधिका सङ्ग सखियन झूलन चाली!
गगन में छाई चहुँओर मनहर बहार,
पपीहा बागों में पिऊं पिऊं रहा पुकार !

अधर धर डोल खिड़किया खोल,
झूलन में डोरिया रेशम की डारी !
सखियाँ जोर से झोटया लगवावे,
नाम पिया का आपस मे बतलावे !

पूछत कैसे बीती सजन सङ्ग रतियाँ ,
लाज शर्म छोड़ एक दूजे को देवे गारी!
हँसत किलकत आपस मे दे दे तारी,
मस्ती में झूम रही मतवारी ब्रज नारी!

@ गोविन्द नारायण शर्मा

One thought on “सावन:उमड़ घुमड़ बदरा आये”
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