@ गोविन्द नारायण शर्मा
साधु गाँठि न बाँधई उदर समाता लेय,
आगे पीछे हरि खड़े जब मांगे तब देय!
कहता तो बहुता मिला गहता मिला न कोय,
सो कहता नही जान दे मिला जो गहता होय!
रोष न रसना खोलिए वरु खोलिए तरवारि,
सुनत मधु परिणाम हित बोलिए वचन विचारि!
तुलसी मीठे वचन ते सुख उपजत चहुँ ओर,
वशीकरण एक मन्त्रः है तजिए वचन कठोर!
मधुर वचन से जाय मिट उत्तम जन अमि,
तनिक शीत जल सौ मिटे जैसे दूध उफान!
कथनी मीठी खाण्ड सी करनी विष की लोय,
कथनी तजि करनी करै विष से अमृत होय!
जब मैं था तब हरि नहि जब हरि हैं मैं नाही,
प्रेम गलि अति सांकरी तामे दो न समांहि!
प्रियतम हम तुम एक है कहन सुनन को दोय,
मन से मन को तौलिए दो मन कबहु न होय!
धनि रहीम जल पंक को लघु जिम पियत अघाय,
उदधि बड़ाई कौन हैं जगत पियासो जाई!
अति अगाध अति उपरो नदी कूप सर बाय,
सो ताको सागर जहाँ जाँकि प्यास बुझाय!
संगति सुमति न पाव ही परे कुमति के धंध,
राखो मेलि कपूर में हींग न होय सुगन्ध!
ज्यों जल बाढै नाव में घर में बाढै दाम,
दोन्यु हाथ उलीचिए यह सज्जन का काम!
जैसी जाकि बुद्धि हैं तैसी कहहि बनाय,
तांको बुरौ न मानिए लेन कहाँ ते जाय!
जिन ढूँढ़ा तिन पाइया गहरे पानी पैठि,
मैं बौरी डूबन डरि रही किनारे बैठि!
रैन गवाई सोय के दिवस गंवाया खाय,
हीरा जनम अमोल था कौड़ी बदले जाय!
जब हम आये जगत में जग हांसे हम रोय,
करनी ऐसी कर चलो हम हांसे जग रोय!