@ गोविंद नारायण शर्मा

छत पे आजा गौरी सज धज
कर सोलह सिणगार ,
पहर झिलमिल तारा जड़ी साड़ी
कर लयाँ चाँद का दीदार!१!

अम्बर में चांदो छिप गयो
काळा बादलिया री ओट,
रूप गोरडी थारो म्हारा
हिवड़े में गहरी कर गयो चोट!२!

थाने हिवड़ा स्यू लगाल्यु
करुँ बिनती बारम्बार हजार,
छत पे आजा गौरी सज
धज कर सोलह सिणगार!३!

गोरा गोरा हाथां मांहि
मेहंदी मण्डवालयो,
पगल्यां म रतनार महावर
सुरंगों रचवालयो!४!

पूनम रा चाँद सरीखो
दमक मुखड़ो गोरी थारो,
अंग प्रत्यंग कामुक जोबन
सागर ज्यों उफ़ण गोरी थारो!५!

 *अमर सुहागन हूजे म्हारी*

गोरडी जन्म जन्म करुँ इंतजार ,

चाँद चकोरी थारा नैणा में रमा ले
गोरे मुखड़े वारी नार!६!

दे अरक चाँद न गोरी छम छम
करती आजा आंगन में ,

होंठा स्यू होंठ मिला करवो
पाउँ आजा म्हारी बाहों में !७!


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