शब्द ब्रह्म हूँ अजर अमर स्फोट अविनाशी ,
परा पश्यंती मध्यमा बेख़री व्योम का वासी!

बादलो की गरजन वेणु की मधुर धुन में हूँ ,
तबले की थाप में गायक की हर अलाप हूँ !

गज की चीत्कार द्रोपदी का करुण क्रन्दन हूँ,
गोपी का विरह मीरा का भक्ति रस आवाह्न!

छन्दों में गीतों में कविता में पद्य अलंकार हूँ,
वेदों उपनिषदों में अपौरुषेय स्तुति गान हूँ!

ह्रदय की स्पंदन रत्नाकर की उतंग तरंग हूँ,
पखेरुओं का कलरव हर साज का नाद हूँ!

स्पर्शय घोष अघोष दन्त्य मूर्धन्य अनुस्वार,
कण्ठ हलन्त रेफ ऋकार तालव्य चन्द्राकार!

अन्त:स्थ लोडित उत्क्षिप्त उष्म संयुक्ताक्षर हूँ,
यमक अन्योक्ति श्लेष उपमा मालोपमा हूँ!

स्वर अर्धस्वर अल्प पूर्ण विराम लघु गुरु हूँ,
यति गति आरोह अवरोह लय ताल टेर हूँ!

मानसिक वाचिक उपांशु तेज में अंशुमान,
वात्सल्य शांत रस रति विरह रौद्र शृंगार हूँ!


गोविन्द नारायण शर्मा

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