बारिश की नन्ही बूंदे छमछम करत बरसत ,
मन हरषत उपवन पिक मधुर गीत सुनावत!

ताल तलैया हिलोरत कलरव गान करत खग,
हरित धानी चुनर ओढ़ नवोढ़ा सजी बहुरंग!

भँवरे मंडराते कलियां झुमके रही पुकारत,
कलियन उपरि झूला झूलत गुँजार करत!

तोरी संगतहु भीनी महकनलगि मोरि चुनर,
देखत मोहि बागन फूलन का जलत जिगर!

चमन में फुलवां बहु खिलत मधुप अरदास,
दर्द सहत हँसत बिन प्रिय मन रहत उदास!

घन माहि बिजुरियाँ दमके मन मोरा डरपत,
बिन पिउ कोउ रखवारो एकहि जानि ढूंढत!

तोहे बिन कल न परे पिऊं पिऊं करहु पुकार,
ज्यों चंद चकोरी निशिदिन पंथ रहहि निहार!


गोविन्द नारायण शर्मा

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