अधर मोन हो गये पलक चिलमन बात,
ना तू सुने ना मैं ये नैना भीतर मुलाकात !

चाँद सलोना मुखड़ा चितवन तिरछी चाल,
पुष्पसर के वेग से बिन्धा मन पंछी बेहाल!

उगते दिनकर की लालिमा रतनार रंगीली,
हवा में मकरन्द पराग सुरभित अलबेली!

कटि करघनी सोहे पग पायल की झंकार,
पचरंगी लहरियों ओढ़े लहंगा झालरदार!

तू अल्हड़ अलबेली चतुर मनसिज नार,
तेरे नयन भ्रू विलास से घायल गुलनार!

नाभि हवन कुंड काया यज्ञवेदी ललाम,
चिबुक सांचे ढली कपोल नयनाभिराम!

उर बने विशाल ठुमक चाल गज गामिनी
कटि लचक लहराती बलखाती तरंगिणी!

मांग का सिंदूर जुल्फों में गजरे की महक,
झुमके की झूलन कंगन की रुनझुन खनक!

मधु मधुरिम पिकबयनी लट लटकनि बाल,
उरू कदली सुकोमल पाटल अधर रसाल!

@ गोविन्द नारायण शर्मा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page