है वो गजब की बला मिर्ची से तीखी बहुत, फिर भी वो हर अंदाज में मुझे भाती बहुत!

अब उससे कोई उम्मीद नही किया करता, करके कुछ उपकार मुझ पे जताती बहुत!

हरजाई का रुलाना मकसद हैं उसका मुझे, हर मुजरे में दर्द भरे नगमे अलापती बहुत!

बन सको तो फौलादी बन के दिखाओ बन्दों, एक बार टूट गए तो जमाना तोड़ेगा बहुत!

नही हैं बांदी बुरी उसकी एक आदत हैं बुरी, जब भी मिली अपने नखरे दिखती हैं बहुत !

सब उस पे मरते हैं वो मरती नही किसी पर , बात ये हैं की वो नजर से कत्ल करती बहुत!

हर पल उसको भूलने की कोशिश करता हूँ, गोविन्द रोज मिलने की बढ़ती तलब बहुत!

रचनाकार @गोविन्द नारायण शर्मा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page