@ गोविन्द नारायण शर्मा
ईर्ष्या बहुत हो गयी मन का मेल निचोड़ दो,
दिली अदावद खूब हैं अब मेल निचोड़ दो !
घाव अब पक गया मवाद को निकाल दो,
ठीक करना है जख्म बेदर्द होकर निचोड़ दो !
बेशक कातिल हवा सांसो का दमघुट रहा,
जिना हैं तो कड़वे अर्क हलक में निचोड़ दो !
अमीरों की कोठी में गरीब चौकीदार रख लो,
खोये कुछ तो बेगुनाह का खून निचोड़ दो !
ईर्ष्या को यारो दिलो से अब रुखसत कर दो,
नमक ज्यादा हो सब्जी में तो नीबू निचोड़ दो