कभी नयन देखता हूँ कभी नक्श देखता हूँ ,
तेरी शोख अदाएं तसल्ली भर निहारता हूँ!
मैं लिखने को तुझ पर वक्त से वक्त चुराता हूँ,
अल्फाज़ो में बदन की नक्काशी लिखता हूँ!
चाँद सी कशिश है शबनम सा जिस्म तेरा,
झील सी गहरी आँखों में इश्क़ देखता हूँ!
अंगारों से अधर तेरे ज़ुल्फ़ घटा सावन की ,
हर तरफ वादियों मैं तेरी खुशबु ही पाता हूँ!
तेरे तन की सलवटे सहरा में रेत के धोरों सी,
बदन के स्वेद कण बालू में चमकते मोती सी!
सूरज छिप गया लालिमा अपनी बिखेर कर,
क्षितिज अवनी अम्बर मिलन तुम हो बेखबर!
अन्योक्ति अलंकृत शब्दार्थ शक्ति व्यंजना,
रसिक जनों के मनोरथ का मोन आवाह्न!
शांत हुई बरसों में अंतस की प्यास बलम,
तेरी बातों से जागी जीने की आस सनम!
झूंठे वादे गम में कभी रास आया नही करते,
गोविन्द उड़ते बादल साया नही किया करते!
@ गोविन्द नारायण शर्मा