@ गोविंद नारायण शर्मा
स्वप्न सुन्दरी भाग्योदय प्रेयसी हो तुम मेरी ,
विधि की सर्वोत्कृष्ठ कृति तुम प्रियतमा मेरी !

बिखरी जुल्फे,मुख चन्द्र पर अवलम्बित घनी,
बाहें परिधि कंठ पर शम्भू के गल भुजंग सी !

तुम आह्लादिनी सुर तरंगिनी शारदा स्वरूपा,
कलकंठ कलरव विहग कोकिला मधुवन सी!

तटिनी आलम्बन को समन्दर निर्बाध दौड़ती,
सुरभित प्रसून पराग गमक पाटल प्रभात सी!

मिश्रित होकर बयार में मकरन्द सी महकती,
भ्रमर गुँजार रस लोलुप सुवास नव कलिका सी!

नवरस प्रधान संयोग मिलन सुखद शृंगार सी ,
हास- विलास प्रवीण रति क्रीड़ा रमणी सी!

ओज माधुर्य प्रसाद गुणों की निर्झरणी सी ,
कटि मेखला पयोनिधि तटबन्ध सीमा सी !

अलंकृत मालोपमा उपमेय उपमान श्लेष सी
अहेतु विभावना उत्प्रेक्षा मानो अन्योक्ति सी!

पग किंकणी नूपुर छनक गन्धर्व नाद सी,
अधर पीयूष रस राजत गान देवांगना सी !

कंज लोचन भ्रू विलास कामदेव पुष्पसर सी,
ह्र्दय उल्लसित उतंग जलधि तरंग सदृश सी !

नृतन प्रकृति नटी हिमाद्रि तनया लास्य सी,
उर वासिनी भव तारण जनक नन्दनी सी!

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