@ गोविन्द नारायण शर्मा

ख्वाब मल्लिका सुखद प्रणय दीदार कब होगा,
ओ मेरी हृदेश्वरी तेरा ये शृंगार कब पूरा होगा!

तेरे माथे की बिंदियां प्राची में उदित भानु सी,
मुखचन्द्र बिखरी अलकें श्याम घटा सुहानी !

तुझ बिन मेरी जान जान निकली जा रही हैं,
तू खुली जुल्फों में महकता गजरा सजा रही हैं!

तेरे अधर चुम्बन आस में साँसे अधीर हो रही,
अभी तलक नशीले नयनों में सुरमा आंज रही !

प्रणय आस में रात बीती भोर तारक दमक रहा ,
तू प्रणय मिलन के हसीं ख्वाब ही दिखा रही!

नववधू ओढ़ लहरिया अलबेली सज रही हैं,
तू कजरी तीज पर सावन में मायके जा रही हैं !

तू समझे क्यों नही प्रणय के मौन इशारों को,
नदियां प्रियतम सागर आलिंगन दौड़ रही हैं !

निहार चांद को कुमुदनी प्रमुदित हो रही हैं ,
बागों में कोयल राग प्रणय के गुनगुना रही हैं!

नवोढ़ा प्रकृति ओढ़ लहरिया चुनर नाच रही,
तू भोरी सेजां प्रणय मिलन सुख बिसराय रही!

तेरी विरह अगन में प्रिय विरही सुलग रहा हैं,
प्यास धरा की बुझाने पयोद झूम बरस रहे हैं !

वल्लरी सहकार संग सुखद प्रणय मिलाप कर रही,
कली बैठाकर उर भँवरे को मधु पान करा रही!

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