नीरस तरुवर में निकली नन्ही कोंपल से ,
उम्मीद की किरण पाकर खिलना सीखो!

पिपीलिका का अथक परिश्रम तुम देखो,
कठिन डगर पर चढ़ मंज़िल पाना सीखो !

मानव देह में शिवि दधीचि हरिश्चन्द्र बन,
देश धर्म पर प्राण न्योछावर करना सीखो!

उगते रश्मि रथी की भाँति स्वयम तपकर , तिमिरहर जग में उजियारा करना सीखो !

मधुमक्खी सा परोपकार बिन मोलभाव,
मधु संचय कर सब कुछ लुटाना सीखो!

कुंदन की चमक पाने को सहस्र बार तपो, मुदगर से पीटकर सोने सा चमकना सीखो!

शीतल होकर चाँद सरीखा शक्तिवान बनो,
रत्नाकर में ज्वार उठाने की कुब्बत सीखो!

कोयल सी मीठी बाणी प्रीतिकर बोलकर,
शत्रु को भी अपना मित्रवर बनाना सीखो!

गुलशन के फूलों से खिलकर बिन मांगे ,
बिखेर महक फिजाँ को महकाना सीखो!

मेघों की गर्जन केकी सा आंख मुन्द नृतन,
अपनों के स्वागत में पलके बिछाना सीखो!

तड़प मछली से जल बिन प्राण न्यौछावर,
स्वाति बूंद प्रतीक्षा प्यासे चातक से सीखो!

@ रचनाकार गोविन्द नारायण शर्मा

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