कजरा लगा के बाग में न अकेले जाया करो !
अल सुबह सोये फूलों को न जगाया करो!!

कलियों के हसीन ख्वाबों को न तोड़ा करो !
कलियों पर बैठे भँवरों को न उड़ाया करो !!

झरोखे में बैठ आहिस्ता फूल न फेंका करो ।
इश्क़ में दिल पर नयन तीर न चलाया करो !!

कश्ती में छेद हो तो पथिक न बिठाया करो !
साजिशन मझधार में नाव न डुबाया करो !!

नाजुक कलाइयों से फूल यूँ न उठाया करो !
नाजुक बदन हरदम नुमाइश न किया करो!!

फूल की मानिन्द डाली पे झूम बुलाया करो,
तितली बन फूलों का मधुरस न पिया करो !!

रातभर पहरे में मद्धिम शमा न जलाया करो !
राधे हँसीं यादों में रात भर न तरसाया करो!!

@ गोविन्द नारायण शर्मा

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