कैसे जीता हूँ तेरे दिये दर्द को तुम क्या जानो,
बिन तेरे कितनी नश्तर राते, तुम क्या जानो !
चहरे पर बिखरी हुई बेबस बेजुबां मुस्कान,
दिल की उदासी का आलम तुम क्या जानो !
तुम मुझको भले दिल से अपना न समझो,
कैसी तलब थी तेरी मुझको तुम क्या जानो !
तुम मुझको चाहे कितना भी फरेबी समझो,
दुनिया अहर्निश राहे तकती तुम क्या जानो !
फूल की महक सी बसी हो तुम रूह में मेरी ,
बिन रूह की देह का आलम तुम क्या जानो !
बरस रहें खत के सीने पर अल्फाज बनकर,
मासूम अश्कों के दर्द की दास्ताँ तुम क्या जानो !
जहां भर की रुसवाईयाँ झेली हैं तेरे खातिर,
कितने रिश्ते रूठ गये मुझसे तुम क्या जानो!
@ गोविन्द नारायण शर्मा