@ गोविंद नारायण शर्मा
मुफलिसी में ईमान खोने की नीयत नही की, अपनी शर्तों पर जिन्दगी जी हुजूरी नही की !
आसान था ईमान को कोढियों में डगमगाना, कभी किसी बेईमान से यारी दोस्ती नही की !
तरक्की सहज थी सच के खरीददार न मिले, बेईमान ने ईमान खरीदने की साजिश नही की !
जिना आसां हैं, जिंदगी में मरकर जिये कोई, जी उठता हूँ रोज, सांसो ने बगावत नही की !
मुसीबतों में कांटो की चुभन ने होंसला दिया, जो थे करीबी उन्हें खुशियाँ गवारा नही की !