@ गोविंद नारायण शर्मा

मायावी ठग भोली भाली जनता ठगने को,
तिलिस्मी अफवाहों का रचते माया जाल,

मामा मारीच ने श्री राम को धोखा दिया,
स्वर्ण मृग मायावी सीता हरण रचा जाल!

सम्प्रति ऑनलाइन ठग प्रलोभन देते,
झूँठ पाखण्ड करके रचते बड़ा जाल!

विद्या अविद्या यमला स्वरूपा दिखती,
ये जग अविद्या का माया मोहनी जाल!

अगुनहि सगुनहि कछु नही भेद अभेद,
ईश्वर कृत खेल मदारी का माया जाल!

पूतना कृष्ण मारण मायावी गोपी बनी,
लीलाधर केशव ने रचा यह माया जाल!

धोखे बाज ठगने को बोलते मीठे बोल,
चतुराई ठग की फैला रहा अपना जाल!

गुड़ की मिठी गोलियाँ मछुआरा डालता,
मछली फँसाने को फेंकता जल में जाल!

बहेलिया चुग्गे पर बिछाता पतला जाल,
पक्षियों के शिकार की उसकी टेडी चाल!

मामा शकुनि रमल विद्या से खेले खेल,
मधुसूदन के आगे चला न माया जाल!

पाण्डव बध भीष्म प्रतिज्ञा टले न काल,
माधव ने चली चाल हुआ न बांका बाल!

द्रोपदी अखण्ड सुहागिन आशीष दिया,
अर्जुन सारथी कृष्ण का था माया जाल!

हर हाथ में मोबाइल कंपनियों की चाल!
दुनियाभर में पसर गया नेटवर्क का जाल!

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