तड़पती मेरे ख़ातिर पर मुझे खबर होने नही देती,
वो मेरी उल्फत में हैं पर उजागर नही होने देती!

ज़ालिम ऐसी सजाएँ कौन देता हैं आशिकों को ,
जिसकी ताउम्र अदालत में कभी पेशी नही होती!

जब कभी मन नही लगता बात मुझसे कर लेती,
दिल मे दर्द तेरा ही दबा रखा है यह नही कहती!

उसकी बेदर्द यादें क्यों मुझे इतनी बेहया सताती,
यादें उसकी हर लम्हा तन्हाई में गुजरने नही देती!

कभी आंखे तरस जाती हैं उसके दीदार को मेरी,
क़ातिल नजर उसकी अक़्स से हटने नही देती!

मारती हैं मुझे हर रोज उसकी कातिल निगाहे,
वो खुद अपने हाथों मारने को जहर नही देती!

पगली हंसती औऱ मुस्कुराती गोविन्द पुकारती,
अदाएं उसकी कभी मुझे चेन से मरने नही देती!!

@ गोविन्द नारायण शर्मा

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