@ गोविंद नारायण शर्मा
भय प्रकट दशरथ सुत राम भव भयहारी,
सुमङ्गल जनमनहारी कौशल्या हितकारी!
कानन कुंडल मकराकृत घनी शोभित भौहे;
पीत झगुलिया कटि छुद्र घन्तिका मन मोहे!
भाल चन्दमा किरीट सोहे अधर पे सुधारस ,
पग पायल खनके ठुमक चलत गह अंगुली!
श्याम सलोने गात चंचल दृग घुँघराले बाल,
राम लखन भ्रात सङ्ग आँगन खेलत खेल !
भक्तन के तारन हारे गो द्विज उद्धार करे,
दानव दलन भूमि भार हरण अवतार धरे!
कंचन थाल भर नृप विप्र को दान पुण्य करे,
अवधपुरी अति शोभित स्वर्गिक आभा बने!
घर तोरण द्वार कदली दल अशोक सजाये,
केतकी चम्पा मोगरा करीर बन्दनवार बनाये!
ढोल नगाड़े शंख घड़ियाल सिंघी नाद बजे,
पुरवासी मोद भरे गन्धर्व अप्सरा नृत्य करे !
ठुमक चले रामलला बाजत छमक पायलिया,
न लगे नजरिया काजल कोर लगावे महतारी।