@ गोविंद नारायण शर्मा

थारी ओल्यू चांदनी रातां म आवे क्यों !
तू मने मनडे म मिलण को चितारे क्यों !!

थारा नाम स्यूँ हिचकी रुक जावे क्यों !
चांद सरिको मुखड़ो गोरी सपना में आवे क्यों !!

म्हारे मनडे म हुक मिलन की जगावे क्यों !
पनघट पर एकली मिलन न बुलावे क्यों !!

पायल न छनकावे ज़ुल्फों को लहरावे क्यों!
हाथों में हिना मेरे नाम की रचावे क्यों!!

ठण्डी माझड़ली रातां में नींद जगावे क्यों!
ख़्वाबां में मिलण न सजधज आवे क्यों!!

उलझी जुल्फां में महकां गजरा लगावे क्यों !
नैन मटका कर मन न यूँ भरमावै क्यों !

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