@ गोविन्द नारायण शर्मा

बैठो जो खाली कभी, करना सोच विचार
खुराफात मत सोचना, जायेगा बेकार।

कलियुग का यह श्राप है, भागेगा मन तेज
रोक सको तो रोक लो, इतना हो परहेज।

आएगी कब आपदा, इसको जाने कौन
खबर कहां है मौत की, क्षण में होते मौन।

दया – धर्म अरु ज्ञान का, होता है सम्मान
भटके जो तुम राह से, तो होगा अपमान।

कपटी दुनिया बन रही, सब माया का खेल
तोबा कर लो तुम इसे, सबसे कर लो मेल।

सच्चाई में कर्म का, होता बड़ा ही नाम
मानवता कहते इसे, इससे बड़ा न धाम।

तेज चाल है दृष्टि की, मन से, सुन ले यार।
संग न कुछ जाना तेरे,अहं न कर भरतार

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