@ गोविंद नारायण शर्मा

मैंने जिसको जिंदगी का ककहरा सिखाया,
वो मुझसे इलाज की फ़ीस मांगने आया!

अंगुली पकड़कर जिसको चलना सिखाया ,
उसने धक्का देकर सड़क पर मुझे गिराया !

खून देकर मौत से बचाई जिंदगी जिसकी,
वही मेरा कत्ल करने शमसीर लेकर आया!

सुनाता था जिसको मैं परियों की लोरियां,
वही मुझे गरुड़ पुराण नजराने में देने आया !

उछालकर पगड़ी मेरी टोपी लेकर आया,
जलाकर चमन मेरा फूलों का गुलदस्ता लाया!

खेलता था जो मेले कपड़ों में कन्धे पर मेरे,
वहीं मेरी अर्थी को कंधा देने सूट में आया !

बचाया नृशंस कातिलों से मैंने जिसको,
उन्ही को लेकर आज मुझे मरवाने आया !

जिसकी चोट पर हमने रोज मरहम लगाया ,
वही मेरे कत्ल को नया खंजर लेकर लाया।

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