समाज के मार्मिक और पारिवारिक मामलों में अक्सर यह पूछा जाता रहा है कि अगर पत्नी के पास उच्च शिक्षा की डिग्री है तो उसे भरण-पोषण प्राप्त करने का अधिकार है या नही ? क्या उसे इससे वंचित किया जा सकता है ? यह एक कानूनी विषय है ,यह न्यायिक विषय है।
विशेषज्ञों की राय और न्यायिक निर्णय: जब इस विषय पर जाने माने एडवोकेट डॉ. मनोज आहूजा से बात की और उनसे जानना चाहा तो उन्होंने इस विषय पर पूरी सटीक और तथ्यात्मक बात की आज हम इस लेख के माध्यम से इस विषय पर यह सब जानेंगे,..
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने पिछले दिनों पारित किये गए निर्णय में कहा कि यदि पत्नी के पास उच्च शिक्षा की डिग्री है तो यह उसे भरण-पोषण के अधिकार से वंचित करने का आधार नहीं हो सकता। जस्टिस प्रेम नारायण सिंह की पीठ ने पत्नी को प्रति माह 10 हजार रुपये का गुजारा भत्ता देने के फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते यह टिप्पणी की। कोर्ट ने अपने आदेश में बताया कि सीआरपीसी की धारा 125 समाजवादी कानून का एक हिस्सा है जिसका उद्देश्य समाज में एक जरूरतमंद महिला की स्थिति में सुधार करना है।
कोर्ट ने कहा:
” सीआरपीसी की धारा 125 के पीछे अंतर्निहित और अंतर्निहित विचार उस महिला की पीड़ा और वित्तीय पीड़ा को कम करना है,जिसने अपना वैवाहिक घर छोड़ दिया है। न्यायालय ने कहा कि मात्रा निर्धारित करने के लिए एक न्यायाधीश को यह पता लगाना होगा कि पत्नी को जीवन स्तर बनाए रखने के लिए क्या आवश्यक है जो न तो विलासितापूर्ण हो और न ही गरीबी, लेकिन यह परिवार की स्थिति के अनुसार होना चाहिए।
यह था मामला: मूलतः,न्यायालय पति मोहम्मद नदीम द्वारा पारिवारिक न्यायालय अधिनियम,1984 की धारा 19(4) के तहत पारिवारिक न्यायालय के आदेश के खिलाफ दायर एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका पर विचार कर रहा था,जिसमें उसे अपनी पत्नी को भरण पोषण के लिए प्रति माह 10 हज़ार रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।
पुनरीक्षण याचिका में याचिकाकर्ता का तर्क था कि प्रतिवादी-पत्नी अधिकतम 18 महीने ही उसके साथ रही,इसलिए उसे इतनी अधिक राशि के लिए दंडित नहीं किया जा सकता है।यह भी तर्क दिया गया कि उसकी पत्नी के पास एमबीए की डिग्री है और वर्तमान में वह प्रति माह 28 हजार रुपये कमाती हैं,जबकि याचिकाकर्ता की आय केवल 20 हजार 912 रुपये है।
इस संबंध में उनके वकील ने निहारिका घोष बनाम शंकर घोष मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा किया जिसमें हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया था कि एक पत्नी तब पति से भरण-पोषण की हकदार नहीं हो सकती जब वह अत्यधिक योग्य हो और शादी के बाद भी कमा रही हो, हालांकि वह अपनी वास्तविक आय का खुलासा नहीं करती है। शुरुआत में न्यायालय ने कहा कि यदि पत्नी के पास उच्च शिक्षा की डिग्री है तो यह सुनिश्चित नहीं किया जा सकता है कि वह अपना भरण-पोषण करने में सक्षम है।अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता ने स्वयं अपनी पत्नी को बिना किसी कारण के छोड़ दिया था और इसलिए, इस तथ्य से संबंधित आरोप कि वह स्वेच्छा से अपने माता-पिता के साथ रह रही है, निराधार पाया गया।
भरण-पोषण राशि के संबंध में कोर्ट ने कल्याण डे चौधरी बनाम रीता डे चौधरी नी नंदी मामले में शीर्ष अदालत के फैसले का हवाला दिया,जिसमें यह देखा गया कि पति की आय का 25% उचित और उचित होगा और उससे अधिक नहीं।
इसके अलावा,पीठ ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता की पत्नी पहले नौकरी करती थी,हालांकि, वर्तमान में वह बेरोजगार है।इसके अलावा अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के वेतन प्रमाण पत्र के अनुसार,यह माना जा सकता है कि उसका वेतन लगभग 40 हजार रुपए है।
इसके मद्देनजर न्यायालय को ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित आदेश में कोई अवैधता,अनियमितता या अनौचित्य नहीं मिला,इसलिए इसने इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं किया।
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