राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका रही है उनके द्वारा चलाए गए आंदोलन में जैसे असहयोग आंदोलन(1920),भारत छोड़ो आंदोलन (1942)और सविनय अवज्ञा आंदोलन(1930) महत्वपूर्ण है जिसे नमक आंदोलन या नमक सत्याग्रह के नाम से भी जाना जाता है।
- अर्थ और तात्पर्य
सविनय अवज्ञा आंदोलन का शाब्दिक अर्थ है कि ब्रिटिश सरकार के कानूनो का विनम्रता पूर्वक,अहिंसात्मक तरीके से अवहेलना,अवज्ञा करना। विशेषरूप से नमक कानून की अवज्ञा करना।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रस्ताव
दिसंबर 1929 में लाहौर में रावी नदी के तट पर पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस अधिवेशन आयोजित हुआ जिसमें पूर्ण स्वराज का लक्ष्य तय करना, गोलमेज सम्मेलनों का बहिष्कार करना और 26 जनवरी 1930 को प्रथम स्वतंत्रता दिवस मनाया जाना सुनिश्चित करने के साथ-साथ इस अधिवेशन में गांधी जी को सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने का अधिकार भी दे दिया गया।
ध्यातव्य: गांधी जी ने अपनी अपनी 61 वर्ष की आयु में सविनय अवज्ञा आंदोलन किया था।
- गांधी जी ने वायसराय को लिखा पत्र
सर्वप्रथम 31 जनवरी 1930 को महात्मा गांधी ने तत्कालीन वायसराय इरविन और ब्रिटिश प्रधानमंत्री मैकडॉनल्ड को एक पत्र लिखकर अपनी 11 सूत्री मांगे रखी जिसे उन्होंने अपने यंग इंडिया अखबार में भी प्रकाशित किया था।
- आंदोलन से पहले 11 सूत्री मांगी रखी गई
11 सूत्री मांगो में मद्य निषेध,विनिमय दर को काम किया जाना, जो कि 50% हो, नमक कर समाप्त करना,सेना पर होने वाले खर्च को कम करना, सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों के वेतन में कमी किया जाना, विदेशी कपड़ों का आयात कम करना और इन पर टैक्स लगाना, सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा करना, गुप्तचर पुलिस को हटाना, भारतीयों को आत्म रक्षा के लिए हथियार रखे जाने का अधिकार देना और समुद्र तट पर भारतीय जहाजों को रोकने का अधिकार देना जैसी मांगे की गई थी।
- आंदोलन का किया एलान
02 मार्च 1930 को गांधी जी ने एक बार फिर से वायसराय इरविन को पत्र लिखा लेकिन इस पत्र पर भी कोई ध्यान नहीं दिया गया तब गांधी जी ने कहा था कि “मेने रोटी मांगी थी मुझे पत्थर मिला इंतजार की घड़ियां अब समाप्त हुई।“
- दांडी यात्रा से शुरु हुआ आंदोलन
सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने से पहले साबरमती आश्रम में 9 मार्च 1930 को गांधी जी ने एक बड़ी सभा को संबोधित किया और आह्वान किया कि जब तक नमक कानून को वापस नहीं लिया जाता तब तक वह डटे रहेंगे या आश्रम नहीं लौटेंगे ।
12 मार्च 1930 को गांधी जी ने अपने 78 साथियों के साथ गुजरात के साबरमती आश्रम (सूरत के पास) से दांडी तक की यात्रा शुरू की जो की 5 अप्रैल 1930 को दांडी पहुंचे और 06 अप्रेल में प्रतीकात्मक रूप से नमक बनाकर नमक कानून की अवहेलना की और नमक कानून को तोड़ा। जिसका अनुसरण उनके अनुयायियों द्वारा किया गया और नमक कानून की अवहेलना की। जिसकी प्रतिक्रिया में अंग्रेजी ने दबाने की कोशिश की, जगह जगह लाठीचार्ज किया गया।
ध्यातव्य : गांधी जी की दांडी यात्रा साबरमती आश्रम से शुरू होकर दांडी पहुंची थी जिसकी दूरी लगभग 387 किलोमीटर थी।
दांडी यात्रा में लोग जुड़ते गए और हजारों की संख्या में लोग इकट्ठे हो गए जो की यात्रा के दौरान भजन कीर्तन करते हुए चलते थे।
यात्रा का पहला पड़ाव : साबरमती से शुरू हुई इस यात्रा का पहला पड़ाव ‘ असलाली’ नामक जगह थी जहां पर धर्मशाला में लोगों के ठहरने की व्यवस्था की गई थी।
ध्यातव्य: गांधी जी की यह दांडी यात्रा 12 मार्च 1930 से शुरू होकर 5 अप्रेल 1930 को दांडी पहुंची थी और 24 दिन की इस यात्रा का दांडी पहुंचने पर सरोजनी नायडू द्वारा स्वागत किया गया।
ध्यातव्य : सरोजिनी नायडू का कहना था कि है कानून तोड़ने वाले तुम्हें नमस्कार हो।
- धरना और बहिष्कार का कार्यक्रम
इस आंदोलन के दौरान नमक बनाकर नमक कानून को तोड़ना विदेशी, वस्तुओं की होली जलाना, शराब की दुकानों पर धरना प्रदर्शन करना और स्कूल,कॉलेज का बहिष्कार किया जाना जैसे कार्यक्रम आयोजित किए गए। इसी वजह से 4 मई 1930 को गांधी जी को गिरफ्तार कर यर्वदा जेल (पूना) में डाल दिया कि आगे चलकर तेज बहादुर सप्रू और एम आर जयंकर के प्रयासों से जनवरी 1931 में रिहा कर दिए गए।
ध्यातव्य : दांडी मार्च के बाद गांधीजी को गिरफ्तार कर यर्वदा जेल में रखा गया था।
- इस यात्रा से की दांडी यात्रा की तुलना
सुभाष चंद्र बोस ने गांधी जी की इस यात्रा की तुलना नेपोलियन की एल्बम टू पेरिस यात्रा से की थी तथा उनके द्वारा ही इसकी तुलना मुसोलिनी की रोम यात्रा से भी की।
ध्यातव्य: सविनय अवज्ञा आंदोलन के दरमियान ही मुस्लिम नेता खान अब्दुल गफ्फार खा ने महात्मा गांधी को नंगा फकीर या मलंग फकीर कहा था।
- गांधी – इरविन या दिल्ली समझोता 1931
जब भारत में सविनय अवज्ञा आंदोलन चल रहा था उसी दरमियान लंदन में प्रथम गोलमेज सम्मेलन का आयोजन हुआ था कांग्रेस और गांधी जी द्वारा इसका बहिष्कार किया और इसमें भाग नहीं लिया। इस कारण इरविन ने गांधी से चर्चा करना उचित समझा। यह समझौता महात्मा गांधी और तत्कालीन वायसराय इरविन के बीच दिल्ली में हुआ था इस कारण इसे दिल्ली समझोता भी कहा जाता है।
- इन मांगों पर बनी सहमति
05 मार्च 1931 को गांधी और इरविन के बीच वार्ता में कुछ बातों पर सहमति बनी जिनमे से नमक कानून को खत्म तो नही किया बल्कि आम लोगोंको अपनी जरूरत के लिए नमक बनाने के अधिकार पर सहमति बनी व्यापार के लिए नहीं। इसके अतिरिक्त हिंसा के आरोपियों के आलावा सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा करने की बात पर भी सहमति बनी।
- दूसरा सविनय अवज्ञा आंदोलन /दूसरा चरण
गांधी इरविन समझौता (1931) होने के बाद गांधी जी ने दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया । इस सम्मेलन में गांधी जी को सफलता नहीं मिलने पर वापस भारत आकर 3 मार्च, 1932 ई. को सविनय अवज्ञा आंदोलन का द्वितीय चरण आरंभ हुआ। अगले ही दिन गांधी जी को गिरफ्तार कर पूना के यर्वदा जेल में डाल दिया। यह दूसरा चरण 18 मई 1934 तक चला और 19 मई को इसको बंद करने की घोषणा कर दी।
ध्यातव्य: सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत के समय वायसराय इरविन था और इसके दूसरे चरण के समय वायसराय फ्रीमैन थॉमस (जिसे लॉर्ड विलिंगडन के नाम से भी जाना जाता है) था।
ध्यातव्य: सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय ब्रिटिश प्रधान मंत्री मैकडोनाल्ड था।