राइट-टू रिकॉल (Right to recall” या “the right to recall”) का प्रावधान क्या है ? आपको बता दे कि लोकतांत्रिक शासन में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को जनमत संग्रह द्वारा हटाने की प्रक्रिया राइट टू रिकॉल कहलाता है।
विश्व में सबसे पहले अमेरिका की लॉस एंजिल्स म्यूनिसिपैलिटी ने 1903 में राइट-टू रिकॉल प्रावधान की शक्ति के बारे में बताया तथा भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में राइट-टू रिकॉल प्रावधान को पहली बार 1977 में सरकारी एजेंडे में शामिल किया।
भारत में इस व्यवस्था को लागू करने वाला पहला राज्य मध्यप्रदेश (2001), दूसरा राज्य छत्तीसगढ़ (2008) तथा राजस्थान देश का तीसरा राज्य है।
राजस्थान पंचायती राज में प्रावधान
राजस्थान में सर्वप्रत 22 मार्च, 2011 को जारी किये गये नगर पालिका संशोधन अधिनियम के अन्तर्गत यह प्रावधान किया गया है कि किसी भी शहरी स्वशासन इकाई के अध्यक्ष (महापौर, सभापति, नगरपालिका अध्यक्ष) को पदमुक्त करने के लिए उस संस्था के 3/4 बहुमत से अविश्वास प्रस्ताव पारित करने के बाद जनमत संग्रह करवाया जायेगा और इसमें अविश्वास प्रस्ताव सत्य साबित हो जाने पर ही अध्यक्ष को पद से हटाया जायेगा। यह प्रस्ताव अध्यक्ष के पद ग्रहण से 2 वर्ष पश्चात् ही लाया जा सकेगा।
अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक करें ग्रामीण पंचायती राज संस्थाओं के प्रमुख को हटाए जाने व अविश्वास प्रस्ताव की क्या है पूरी प्रक्रिया। – https://go.shr.lc/4cc9UI4
राजस्थान में पहला प्रयोग
राइट टू रिकॉल कानून 2011 में राजस्थान में लाया गया गया, जिसका राजस्थान में प्रयोग दिसम्बर, 2012 में हुआ, जब मांगरोल नगर पालिका (बारां जिला) के निर्वाचित अध्यक्ष अशोक जैन को पद से हटाने के लिए जनमत संग्रह कराया गया। हालांकि इस प्रावधान का प्रयोग अशोक जैन के पक्ष में रहा और अशोक जैन को हटाया नहीं जा सका।
ध्यातव्य : राजस्थान में सन 2017 में राइट टू रिकॉल का प्रावधान समाप्त कर दिया गया।
http://rajpanchayat.rajasthan.gov.in