लोकतंत्र की प्रारम्भिक पाठशाला कहलाने वाला और शासन का तीसरा स्तर पंचायती राज व्यवस्था है । भारत मे इसका पहला प्रयास स्वतंत्रता के बाद 1952 में सामुदायिक विकास कार्यक्रम के साथ ही शुरुआत हुआ था जो कि अमेरिकी व्यवस्था से प्रभावित था । हालांकि यह प्रयास सफल नही हुआ ।
भारत मे त्रिस्तरीय आधुनिक पंचायत राज व्यवस्था की शुरुआत 2 अक्टूबर 1959 को नागौर जिले के बगतरी गांव में प.नेहरू द्वारा उद्घाटन के साथ ही हुई थी । ध्यातव्य- इस समय राजस्थान के मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया और सचिव भगवंत सिंह थे ।
पंचायती राज का दूसरी बार उद्घाटन आंध्र प्रदेश में 11 अक्टूबर 1959 इसकी शुरुआत की गई । आंध्र प्रदेश ही पहला राज्य था जहां पर एक साथ पूरे राज्य में पंचायत राज को लागू किया गया था ।
- राजस्थान है पंचायत राज का जनक राज्य
आधुनिक पंचायत राज की शुरुआत राजस्थान से ही हुई थी इसीलिए राजस्थान ही इसका जनक राज्य कहलाता है। जब नागौर जिले के बगतरी गांव में पंचायत राज का उद्घाटन किया था तब बलवंत राय मेहता के परामर्श पर ही पंचायत राज को त्रिस्तरीय मनाया गया। उसके पश्चात अशोक मेहता की अध्यक्षता में गठित समिति ने पंचायत राज व्यवस्था को चार स्तरीय बनाए जाने का सुझाव दिया था जिसे लागू नहीं किया गया । इसके अतिरिक्त सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पंचायत राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिए जाने का पहला सुझाव अशोक मेहता समिति के द्वारा ही दिया गया था।
- 73 वे संविधान संशोधन और पंचायत राज संस्थाये
73वें संविधान संशोधन विधेयक 1992 के द्वारा पंचायत राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दे दिया गया। इस संविधान संशोधन के द्वारा पंचायत राज को सामान्यतः त्रिस्तरीय ही बनाया गया है लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि पंचायत राज संस्थाओं को एक स्तरीय, दो स्तरीय और तीन स्तरीय पंचायत राज संस्था में विभाजित किया है। जिनमें अधिकतम राज्यों में त्रिस्तरीय पंचायत राज संस्थाएं ही है । इसलिए सामान्यतया इसे त्रिस्तरीय पंचायत राज व्यवस्था ही कहा जाता है ।
पश्चिमी बंगाल में पंचायत राज के चार स्तरीय होने की बात कही जाती रही है । इस बारे में क्या है प्रावधान क्या वास्तव में पश्चिमी बंगाल ही व राज्य हैं जहां पंचायत राज्य के तीन स्तर है।
- एक स्तरीय पंचायत राज संस्थाओं वाले राज्य
देश मे जम्मू एंड कश्मीर ही एक मात्र ऐसा राज्य/केंद्र शासित प्रदेश है जहां एक स्तरीय पंचायत राज व्यवस्था का प्रावधान किया गया है। यहां पर ग्राम पंचायत को हल्का पंचायत कहा जाता है।1.हल्का पंचायत
- द्वि स्तरीय पंचायत राज संस्थाओं वाले राज्य
73वें संविधान संशोधन के द्वारा देश के 07 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पंचायत राज संस्थाओं के द्वि स्तरीय व्यवस्था को ही अपनाया गया है। जिनमें गोवा,मणिपुर, सिक्किम राज्य हैं और दादर और नागर हवेली दमन एवं दीव, लक्षद्वीप, पांडिचेरी ऐसे केन्द्र शासित प्रदेश है जहां पर पंचायत राज संस्थाओं के द्वितीय संस्थाओं का प्रावधान किया है।1.ग्राम पंचायत2.जिला पंचायत
- त्रिस्तरीय पंचायत राज व्यवस्था वाले राज्य
73 वे संविधान संशोधन विधेयक 1992 देश के अधिकतम राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में त्रि स्तरीय पंचायत राज व्यवस्था का ही प्रावधान किया है ।
पंचायत राज संस्थाओं के तीन स्तर
1.ग्राम पंचायत,
2.मध्यवर्ती स्तर ( ग्राम पंचायत समिति कहा जाता है)
3.जिला परिषद
देश मे 24 (राज्य+केन्द्र शासित प्रदेश) जिनमे आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार ,छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल ,मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र,उड़ीसा,पंजाब, राजस्थान,तमिलनाडु ,उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड ,पश्चिमी बंगाल ,तेलंगाना और त्रिपुरा जैसे राज्य और अंडमान और निकोबार ,व चंडीगढ़ में भी त्रिस्तरीय पंचायत राज व्यवस्था/ संस्थाओं को ही अपनाया गया है।
- प.बंगाल में त्री स्तरीय या चार स्तरीय पंचायतीराज
पश्चिम बंगाल एक ऐसा राज्य जो समय-समय पर विभिन्न घटनाओं के कारण चर्चा में रहता आया है । पंचायत राज संस्थाओ को लेकर भी राजनीति विज्ञान विषय से जुड़े हुए विद्यार्थियों और प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों के बीच कई बार पश्चिमी बंगाल को लेकर इस सवाल उठाया जाता रहा है कि पश्चिम बंगाल में पंचायत आजा रास्ता तीन स्तरीय है या चार स्तरीय । इसके अतिरिक्त ऐसा कई पुस्तकों में इसका उल्लेख भी है और कई क्लासेस में पढ़ाया भी जाता है कि प.बंगाल में पंचायत राज व्यवस्था त्रिस्तरीय न होकर चार स्तरीय हैं ,जबकि सच्चाई का पहला दूसरा ही है ।
स्वतंत्रता के पश्चात जब पश्चिमी बंगाल में 1957 में पंचायत कानून द्वारा द्वि स्तरीय पंचायत राज व्यवस्था का प्रावधान किया था। लेकिन 1963 में इसे चार स्तरीय से हटाकर त्री स्तरीय बना दिया गया और लगभग 10 वर्षों तक पश्चिमी बंगाल में चार स्तरीय पंचायत राज व्यवस्था का प्रावधान बना रहा।
1973 तक यह चार स्तरीय संस्थायें थी
1.ग्राम पंचायत
2.आंचल पंचायत
3.आंचलिक पंचायत
4 .जिला परिषद
लगभग 10 वर्षों का समय गुजर जाने के बाद ही सन 1973 में इसमें संशोधन करते हुए पश्चिमी बंगाल पंचायत अधिनियम द्वारा पंचायत राज के तीसरे स्तर आंचलिक परिषद को समाप्त कर दिया और तभी से पश्चिमी बंगाल में भी त्रिस्तरीय पंचायत राज संस्थाओं का ही प्रावधान था । वर्तमान में जब 73 वा संविधान संशोधन लागू हुआ तब से ही त्रिस्तरीय पंचायत राज व्यवस्था को ही अपनाया गया है।
1.ग्राम पंचायत
2.अंचल पंचायत (मध्यवर्ती संस्था)
3.जिला परिषद
73वें संविधान संशोधन विधेयक 1992 के द्वारा आंध्र प्रदेश अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, गुजरात, झारखंड, छत्तीसगढ़, हरियाणा,हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक , मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र,उड़ीसा, पंजाब ,राजस्थान तमिलनाडु, उत्तराखंड, तेलंगाना, त्रिपुरा और उत्तर प्रदेश की तरह है पश्चिमी बंगाल में भी पंचायत राज व्यवस्था के त्रिस्तरीय व्यवस्था को ही अपनाया गया है ।
पश्चिमी बंगाल के सिलीगुड़ी कि जिला स्तर की पंचायत को जिला परिषद नहीं कहा जाता बल्कि सिलीगुड़ी महाकुंभ परिषद के नाम से जाना जाता है ।यही नही इसके अध्यक्ष को सभापति की बजाय सहकारी सभापति कहा जाता है । दार्जिलिंग गोरखा परिषद क्षेत्र में जिला परिषद की पंचायत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243 M के उपबंध लागू नहीं है।
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