सन 2023 के सितंबर महा में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा संसद का विशेष सत्र बुलाए जाने पर कुछ नवीन राज्यों के गठन की चर्चा थी। चाहे आम जनता की चोपाल हो,राजनीतिक गलियांरे या फिर समाचार पत्र और न्यूज़ चैनल और सोशल मीडिया यह चर्चा में छाया रहा। यह कयास लगाया जाता रहा था कि देश में कुछ नवीन राज्यों का गठन,उसके क्षेत्र में बदलाव किया जा सकता है।
हाल ही में थी इनकी चर्चा: संसद के विशेष सत्र बुलाए जाने पर देश में उत्तर प्रदेश से अयोध्या नया राज्य, महाराष्ट्र का विभाजन और राजस्थान को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। राजस्थान का दो भाग में विभाजित करने के परिणामस्वरुप नवनिर्मित राज्य का नाम मरूप्रदेश हो सकता है ऐसा अनुमान लगाया जा रहा था।
आखिर नए राज्य बनाने की शक्ति किसके पास है ?इसकी क्या प्रक्रिया है ? और संविधान में इसका क्या प्रावधान है ? आज हम इस आलेख के माध्यम से नवीन राज्य के गठन और संविधान में इसके प्रावधान से संबंधित विषय पर चर्चा करेंगे।
- भारतीय संघ और राज्य क्षेत्र का प्रावधान:
भारतीय संविधान के भाग 1 में अनुच्छेद एक से लेकर अनुच्छेद 4 तक में भारतीय संघ एवं उसके राज्य क्षेत्र के बारे में प्रावधान किया गया है।
संविधान के अनुच्छेद 2 में प्रावधान :
इसके अंतर्गत भारत संघ में नए राज्यों के प्रवेश और उन्हें शामिल करने की शक्ति संसद में है का प्रावधान है । इसके तहत संसद को दो प्रकार की शक्ति प्राप्त है ।
1.नए राज्य को संघ में शामिल करने की शक्ति
2.नए राज्य को स्थापित करने की शक्ति।
नए राज्य को भारत संघ में शामिल करने का प्रावधान के संबंध में उन राज्यों से हैं जो पहले से ही विद्यमान है जबकि दूसरे प्रावधान का संबंध उन राज्यों से है जो भविष्य में स्थापित या किसी नए क्षेत्र से अर्जित किए जा सकते हैं।
संविधान के अनुच्छेद 3 में प्रावधान :
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के तहत नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्य के क्षेत्र और सीमाओ में तथा उसके नाम में परिवर्तन किए जाने का प्रावधान है । इस संबंध में कहा गया है कि नए राज्यों के निर्माण, वर्तमान राज्यों के नाम और उसके क्षेत्र सीमाओं में परिवर्तन करने की शक्ति भारतीय संसद के पास है।
ध्यातव्य: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 3, भारत शासन अधिनियम 1935 की धारा 290 से प्रभावित है।
ध्यातव्य: ज्ञात हो कि भारतीय संसद द्वारा पारित विधेयक को राष्ट्रपति संसद में विधायक पुन स्थापित होने से पूर्व संबंधित राज्य तथा राज्यों के विधान मंडल को विचार करने के लिए भेजता है। यदि वह राज्य विधान मंडल राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित अवधि तक अपने विचार व्यक्त नही करता है या अपनी राय व्यक्त नहीं दी जाती है तो राष्ट्रपति विधेयक को संसद में पुन स्थापित कर सकता है ।
- क्या इसमें संबंधित राज्य की सहमति आवश्यक है ?
अक्षर ही सवाल उठाया जाता है कि क्या नवीन राज्यों के निर्माण में संबंधित राज्य जिसका विभाजन किया जा रहा है या जिसका नाम परिवर्तन किया जा रहा है या जिसकी सीमाओं में बदलाव किया जा रहा है उसकी सहमति आवश्यक है या नहीं ध्यान देने योग्य बात यह है कि राज्य विधान मंडल के विचार जानना आवश्यक है, ना कि उसे उस विषय पर निर्णय करने का अधिकार है,राज्य द्वारा दिए गए विचार को स्वीकार किया जाए यह आवश्यक नहीं है बाध्यकारी नही है। बिना राज्यों की समिति के भी यह किया जा सकता है।
- इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय ने दिया यह निर्णय
सर्वोच्च न्यायालय में आए एक निर्णय बाबूलाल पराठे बना मुंबई राज्य 1960 में यह निर्णय दिया कि संबंधित राज्य को राष्ट्रपति द्वारा दिए गए समय या कालावधि में राज्य विधान मंडल अपना विचार उसे विधेयक पर व्यक्त कर देता है तो भी सांसद राज्य विधान मंडल के विचारों को स्वीकार करने अथवा उसके अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य नहीं है।
- क्या इसके लिए संविधान संशोधन आवश्यक है ?
अनुच्छेद दो और अनुच्छेद तीन के तहत नवीन राज्यों के निर्माण नाम परिवर्तन सीमाओं में बदलाव के लिए क्या संविधान संशोधन आवश्यक है इस संबंध में संविधान के अनुच्छेद 4 में यह प्रावधान किया गया है कि अनुच्छेद 2 और अनुच्छेद 3 के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अगर संसद चाहे तो कोई भी कानून और विधि का निर्माण कर सकती है। यह अनुच्छेद 368 के प्रयोजन के लिए संविधान का संशोधन नहीं समझी जाएगी अर्थात ऐसे विधायक साधारण विधेयक की तरह साधारण बहुमत से ही पारित हो सकता हैं।
ध्यातव्य: नवीन राज्यों के निर्माण गठन नाम में परिवर्तन सीमाओं में परिवर्तन से संबंधित प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में रखा जा सकता है और इसे साधारण बहुमत से ही पारित किया जा सकता है।
ध्यातव्य: राज्य पुनर्गठन से संबंधित अब तक 26 बार अधिनियम लाये जा चुके है। सर्वप्रथम सन 1953 में आंध्र राज्य अधिनियम 1953 लाया गया और अब तक अंतिम बार आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम सन 2000 लाया गया ।
ध्यातव्य: इसी प्रकार अब तक 07 (सात ) बार राज्य एवं संघ शासित प्रदेशों के नाम में परिवर्तन के लिए अधिनियम लाया जा चुका है,सबसे पहले सन 1956 में आंध्र को आंध्र प्रदेश नाम में परिवर्तित किया गया और अब तक अंतिम बार सन 2011 में उड़ीसा (नाम परिवर्तन)अधिनियम लाया गया था जिसमें उड़ीसा नाम को परिवर्तित करके ओड़ीशा किया गया।
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