वसुदेव कुटम्ब और सनातन संस्कृति,आपसी भाईचारे , सहिष्णुता, सहयोग, मेलमिलाप, एक दूसरे को साथ लेकर चलने वाले इस देश मे जो भी आया उसे हमने सहज स्वीकार कर लिया । यहां भिन्न -भिन्न भाषा और संस्कृति वाली लोग रहते है । जहां तक जाति के संदर्भ मे बार करे तो आपने आंग्ल भारतीय (एंग्लो इंडियन) का नाम तो सुना ही होगा। भारतीय सवैधानिक इतिहास और सरकार में आंग्ल भारतीयों की भूमिका के बारे में सुना और देखा भी होगा। चाहे संविधान निर्माण का कार्य हो या फिर लोकसभा और राज्य विधान सभाओं में इनको प्रतिनिधित्व देकर साथ चलने की बात हो इन इसका एक लंबा इतिहास रहा है । भारतीय संविधान में भी इस बारे में प्रावधान किया है  ।

कौन है आंग्ल भारतीय ? 

आंग्ल भारतीयों के संबंध में  बात करे तो यह उन अंग्रेजों की ओर संकेत करता है जो भारत में बस गए हैं या फिर किसी व्यवसाय के उद्देश्य से यहाँ निवास करते है ।लेकिन ऐसे लोग यहां के मात्र प्रवासी होने के कारण ही इनको राजनीतिक अधिकार प्रदान नहीं दिये जाते । आंग्ल भारतीयों में से  एक वर्ग ऐसा भी है जिनको राजनीतिक अधिकार दिए गए है क्योंकि ये इस देश के नागरिक है अन्य भारतीयों हक़ी तरह अधिकार भी प्राप्त है।

आपको यह बता दे कि यह वर्ग भारत के अंग्रेज प्रवासियों और भारतीय स्त्रियों के संपर्क से उत्पन्न हुआ है कहने का तात्पर्य भारतीय माता और अंग्रेज पिता  या पितृ परंपरा में कोई भी पुरुष भारतीय रहा हो या हो और उनसे उत्पन्न संतान ऐंग्लो इंडियन कहलाता है। यह शब्द मुख्य रूप से ब्रिटिश लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है लेकिन ब्रिटिश अंग्रेज की संतान ही आंग्ल भारतीय की श्रेणी में आता हो ऐसा नही है।

सर्वप्रथम 1935 के अधिनियम में इसका उल्लेख किया गया था और वर्तमान भारतीय संविधान में भी इनको  संविधान में अनुच्छेद 366(2) में परिभाषित किया गया है । हालांकि आज के दौर में इनकी संख्या अल्प मात्रा में ही है फिर भी आरक्षण के माध्यम से उन्हें विशेषाधिकार प्रदान किये गए है लेकिन वर्तमान में इस आरक्षण व्यवस्था में परिवर्तन किया है ।

संविधान सभा में आंग्ल भारतीयों की भूमिका


कैबिनेट मिशन योजना के तहत संविधान निर्माण हेतु संविधान सभा का गठन किया गया था । इस संविधान सभा में भी आंग्ल भारतीयों का प्रतिनिधित्व था । जहां तक संविधान सभा मे  इनकी सदस्य संख्या की बात है तो इनकी सदस्य संख्या मात्र 3 थी । आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि 3 सदस्य होने के बावजूद भी एक आंग्ल भारतीय सदस्य संविधान सभा के उपाध्यक्ष रहे थे। आपको बता दें कि संविधान निर्माण के दौरान भी ठाकुरदास भार्गव ने लोक सभा मे आंग्ल भारतीयों का मनोनयन के प्रावधान का विरोध किया था ।


संविधान सभा मे उपाध्यक्ष रहे ये आंग्ल भारतीय


जब 9 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक आयोजित हुई और डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को पहला अस्थायी अध्यक्ष मनोनीत किया गया था उसी दिन एक  सदस्य को अस्थायी उपाध्यक्ष मनोनीत किया गया था । आपको जानकर आश्चर्य होगा कि वह कोई और नही बल्कि एक आंग्ल भारतीय सदस्य जिनका नाम फ्रैंक एंथोनी  था । इस प्रकार कहा जा सकता है कि संविधान निर्माण में आंग्ल भारतीयों की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। ज्ञात हो कि संविधान सभा में एक सदस्य के रूप में इन्हीं के प्रयासों से ही एंग्लो इंडियन समुदाय के लिए संविधान में विशेष प्रावधान जोड़े जाने की मांग की । 

संवैधानिक प्रावधान और आंग्ल भारतीय


 संविधान निर्माताओं ने ही इस बात पर विशेष प्रावधन नही किया बल्कि सरकार और शासन में इनकी सहभागिता के लिए संघीय विधायिका में निम्न सदन लोकसभा और राज्य विधानसभाओ  में भी प्रतिनिधित्व दिया गया है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 334 में लोकसभा तथा राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति तथा आंग्ल भारतीयों के लिए आरक्षण का प्रावधान किया गया था।


इन वर्गों के लिये संविधान में यह आरक्षण 10 वर्षों के लिए दिया गया था लेकिन इसे प्रति 10 वर्ष के बाद लगातार 10- 10 वर्षो के लिये बढ़ाया जाता रहा है । सन 2019 तक अनुच्छेद 334 में संशोधन करके आरक्षण के प्रावधानों को 7 बार बढ़ाया गया है । लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की आंग्ल भारतीयों के लिए इसे 6 बार ही बढ़ाया गया है । भारतीय संविधान आंगन भारतीयों को भी लोकसभा में अनुच्छेद 331 और राज्य विधान सभाओं  में अनुच्छेद 333 के तहत मनोनित करने का प्रावधान किया है ।

लोक सभा मे आंग्ल भारतीयों का प्रतिनिधित्व


भारतीय संविधान के अनुच्छेद 331 के तहत- अनुच्छेद 81 में किसी बात के होते हुये भी राष्ट्रपति को यह प्रतीत हो जाये कि लोकसभा में आंग्ल भारतीय समुदाय को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नही है तो वह आंग्ल भारतीयों समुदाय को उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए लोकसभा में अधिकतम 2 सदस्यों का मनोनयन कर सकता है ।अब तक अंतिम बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिछले कार्यकाल में राष्ट्रपति के द्वारा दो आंग्ल भारतीयों का मनोनयन किया गया था। ज्ञात हो कि”ऑल इंडिया एंग्लो इंडियन एसोसिएशन” के मुखिया रहे फ्रेंक एंथोनी जो कि स्वयं आंग्ल भारतीय थे नेहरू जी के अच्छे मित्र भी थे उनको लोकसभा में 8 बार जो बार सांसद मनोनित किया था । इसके अतिरिक्त एक सदस्य और है जिनका नाम ई.ऐ.ई.टी वेरव है जो 7 बार मनोनीत किए गए थे।


राज्य विधान सभाओं में आंग्ल भारतीयों का प्रतिनिधित्व 

लोकसभा में आंग्ल भारतीयों को उचित प्रतिनिधित्व के प्रावधान के साथ-साथ अनुच्छेद 331राज्य विधानसभाओ में  भी प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया गया है । इस संबंध में अनुच्छेद 333 के तहत अनुच्छेद 170 में किसी बात के होते हुये भी यदि किसी राज्य के राज्यपाल को यह प्रतीत हो कि राज्य विधानसभा मे आंग्ल भारतीय समुदाय को उचित प्रतिनिधित्व नही मिला है तो उस राज्य का राज्यपाल राज्य विधानसभा में आंग्ल भारतीय को  प्रतिनिधित्व देने के लिये अधिकतम एक आंग्ल भारतीय सदस्य का मनोनयन कर सकता है। 

यह प्रावधान इन राज्यो के लिए विशेष महत्व रखता है- आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ , महाराष्ट्र, तेलंगाना, गुजरात ,तमिलनाडु, झारखंड, उत्तर प्रदेश, केरल,  उत्तराखंड, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल।

126वां संविधान संशोधन विधेयक(बिल) और आंग्ल भारतीयों की स्थिति  

संविधान द्वारा अनुच्छेद 334 के तहत अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और आंग्ल भारतीयों के लिए  आरक्षण का जो प्रावधान किया गया है जिसकी समय सीमा 25 जनवरी 2020 को समाप्त हो रही थी उसको आगे बढ़ाने के लिए संसद के द्वारा 126 वां संविधान संशोधन विधेयक 2019 लाया गया जो कि 104 वां संविधान संशोधन अधिनियम के रूप में लागू हुआ । इस संविधान संशोधन के द्वारा अनुसूचित जाति,अनुसूचित जनजाति के आरक्षण की समय सीमा 10 वर्ष बढ़ाकर 25 जनवरी 2030 तक कर दी गई।


अनुच्छेद 334 के तहत प्राप्त आंग्ल भारतीयों के लिए भी आरक्षण के समय सीमा 25 जनवरी 2020 को ही समाप्त  हो रही थी लेकिन अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की तरह इसे आगे 10 वर्षों तक बढ़ाए जाने का इस संविधान संशोधन में कोई  प्रावधान नहीं किया गया । इस प्रकार कहा जा सकता है कि इस संविधान संशोधन के द्वारा लोकसभा में दो आंग्ल भारतीयों तथा राज्य विधानसभा में एक आंग्ल भारतीय के मनोनयन का प्रावधान समाप्त कर दिया गया ।
बताया जाता है कि  जनगणना में आंग्ल भारतीयों को सर्वप्रथम 1911 में शामिल किया गया था  और वर्तमान में 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार इनकी संख्या मात्र 296 में ही शेष रह गई। हालांकि आंग्ल भारतीय समुदाय के लोग इन आंकड़ों पर सवाल उठाते हैं और संख्या इनसे अधिक होने की बात करते हैं।

राष्ट्रपति निर्वाचन में आंग्ल भारतीय सदस्यों की भूमिका  

राष्ट्रपति के निर्वाचन में संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य तथा राज्य विधानसभा के निर्वाचित सदस्य भाग लेते हैं जबकि  राज्य सभा मे राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत कला, विज्ञान, साहित्य और समाज सेवा के क्षेत्र के 12 मनोनीत सदस्य के साथ साथ लोकसभा में मनोनित दो आंग्ल भारतीय सदस्यों को भी भाग लेते का अधिकार नही है क्योंकि जहां तक आंगन भारतीय सदस्यों का सवाल है तो उनका मनोनयन राष्ट्रपति के द्वारा ही किया जाता है । आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की संभवत टेरेस ओबराय पहले आंगन भारतीय हैं जिन्होंने राष्ट्रपति  निर्वाचन( 2012) में भाग लिया था ।ज्ञात हो कि इन्होंने तृणमूल कांग्रेस के सांसद के रूप में मतदान किया था न कि मनोनित सदस्य के रूप में ।

अंतिम आंग्ल भारतीय जिनको राष्ट्रपति ने मनोनीत किया था ।

 126 वे संविधान संशोधन विधेयक 2019  के द्वारा जो आरक्षण की समय सीमा को बढ़ाने के साथ लोक सभा और  विधानसभा में आंग्ल भारतीयों के मनोनयन का प्रावधान भी समाप्त किया गया । पिछले कार्यकाल के लिए मनोनीत सदस्यों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद किसी भी आंग्ल भारतीय सदस्य का मनोनयन नहीं हुआ। लोकसभा में अंतिम वह सदस्य जो आंग्ल भारतीय समुदाय के सदस्य के रूप में राष्ट्रपति के द्वारा मनोनीत किए गए थे उनमे प्रो.रिचर्ड और जार्ज बेकर थे ।  ज्ञात हो कि  जॉर्ज बेकर जो कि एक अर्थशास्त्री हैं तथा प्रोफेसर रिचर्ड जो कि एक राजनेता के साथ एक कलाकार भी हैं ।

  • 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने से लेकर 25 जनवरी 2020 तक आंगन भारतीयों के लिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में 70 वर्षों तक आरक्षण का प्रावधान रहा था। सरकार ने इसे आगे जारी रखने की आवश्यकता नही समझी ।

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