दूसरे महायुद्ध के पश्चात ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री लॉर्ड इटली ने भारतीयों के लिए एक संविधान सभा और संविधान के निर्माण करने के उद्देश्य को लेकर मार्च 1946 में लॉर्ड पैथिक लोरेंस की अध्यक्षता में 3 सदस्यीय मिशन जिसे कैबिनेट मिशन कहा जाता है भारत भेजा । आपको यह जानकारी बता दूँ कि इसे कैबिनेट मिशन योजना इसीलिए कहा जाता है क्योकि यह तीनों सदस्य ब्रिटिश मंत्रिमंडल के सदस्य थे । जिनमें पैथिक लोरेंस इस मिशन का अध्यक्ष था तथा दो अन्य सदस्यों में स्टेफोर्ट क्रिप्स और ए.वी.एलेक्जेंडर थे ।
केबिनेट मिशन की इस योजना के अंतर्गत प्रत्येक प्रांत और देशी रियासत द्वारा भेजे जाने वाले सदस्यों की संख्या का निर्धारण किया गया। इस सदस्य संख्या का निर्धारण का आधार जनसंख्या थी । जिसमे प्रति दस लाख की जनसंख्या पर एक सदस्य का निर्वाचित/मनोनयन होना था साथ ही देसी रियासतों में भी यही अनुपात रखा ।
केबिनेट मिशन योजना के तहत संविधान सभा के सदस्यों की संख्या
कैबिनेट मिशन योजना के तहत संविधान सभा की कुल सदस्य संख्या 389 निर्धारित की गई । जिनमें से 292 सदस्य ब्रिटिश प्रांतों से तथा 04 सदस्य चीफ कमिश्नर प्रांतों से निर्वाचित और इसके अतिरिक्त 93 सदस्य देशी रियासतों से मनोनय से होना था। कुल 389 सदस्यों में सेे ब्रिटिश प्रांत (292) तथा 04 ब्रिटिश चीफ कमिश्नर प्रांत ( अजमेर मेरवाड़ा ,बलूचिस्तान, कुर्ग और दिल्ली ) को मिलाकर 296 सदस्य निर्वाचित तथा 93 सदस्य देशी रियासतों से जिनके कि मनोनीत का प्रावधान था । इस सदस्य संख्या को अगर हम दलीय आधार पर विभाजित करें तो कुल सदस्य संख्या में से कांग्रेस के 208, मुस्लिम लीग 73, यूनियनिस्ट पार्टी 01,यूनियनिस्ट मुस्लिम 01, यूनियनिस्ट शेड्यूल कास्ट 01, कृषक प्रजा पार्टी 01, अछूत जाति संघ 01, साम्यवादी 01 तथा निर्दलीय सदस्यों की संख्या 8 थी।
देश के विभाजन की घोषणा के बाद संविधान सभा के सदस्यों की संख्या
मुस्लिम लीग के द्वारा संविधान सभा के बहिष्कार के बाद जब विभाजन को स्वीकार किया गया और इस बाबत 3 जून 1947 को देश के विभाजन की घोषणा के बाद संविधान सभा के सदस्य की संख्या में परिवर्तन हुआ जो संख्या 389 थी वह घटकर 324 रह गई जिनमें से 232 सदस्य ब्रिटिश प्रांतों से , 03 सदस्य चीफ कमिश्नर प्रांतों ( अजमेर मेरवाड़ा कुर्ग और दिल्ली) से तथा 89 सदस्य देशी रियासतों से थे ।
स्वतंत्रता के बाद संविधान सभा में सदस्यों की संख्या
संविधान सभा के सदस्यों में एक बार फिर से परिवर्तन हुआ जब 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ तो संविधान सभा के सदस्यों की जो संख्या 324 थी वह घटकर 299 रह गई जिनमें 226 सदस्य ब्रिटिश प्रांतों से जो कि भारतीय प्रांत बन चुके थे, 03 सदस्य चीफ कमिश्नर प्रान्तों से तथा 70 सदस्य देशी रियासतों के सदस्य शामिल थे।
संविधान सभा की पहली बैठक में सदस्यों की संख्या
सविधान सभा के गठन के उपरांत 9 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की पहली बैठक आयोजित हुई जिसके अस्थाई अध्यक्ष डॉ सच्चिदानंद सिन्हा थे । आपको यह जानकर आश्चर्य होगा की संविधान सभा के सदस्य आचार्य जेबी कृपलानी के अनुरोध पर संविधान सभा की पहली बैठक की इस कार्यवाही में डॉ सच्चिदानंद सिन्हा ने सभापति का आसन ग्रहण किया था । जहां तक इस बैठक में सदस्यों के शामिल होने का सवाल है तो इस बैठक में कुल 211 सदस्यों ने हिस्सा लिया था जबकि 299 सदस्यों को हिस्सा लेना था।
संविधान सभा के किस प्रांत से सर्वाधिक सदस्य थे?
संविधान सभा में ब्रिटिश प्रांत, चीफ कमिश्नर प्रांत और देशी रियासतों का प्रतिनिधित्व था । संख्या के आधार पर देखा जाए तो ब्रिटिश प्रांतों में संयुक्त प्रांत से संविधान सभा में सर्वाधिक सदस्य थी । वहीं दूसरी और असम प्रांत से सबसे कम सदस्य संख्या थी । वहीं देशी राज्यो में मैसूर से सबसे अधिक सदस्य संख्या थी वही दूसरी और हैदराबाद रियासत ऐसी रियासत थी जिसने संविधान निर्माण में हिस्सा नहीं लिया था ।
संविधान सभा के सदस्यों में महिला सदस्यों की संख्या
संविधान सभा में महिला सदस्यों की संख्या पुरुषों के अनुपात में काफी कम देखी गई थी लेकिन जब जुलाई अगस्त 1946 में सविधान सभा के निर्वाचन हुए थे उसमें 15 महीने महिलाएं संविधान सभा के सदस्य के रूप में निर्वाचित हुई थी लेकिन आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि संविधान सभा की पहली बैठक जो कि 9 दिसंबर 1946 को हुई थी । इस बैठक में संविधान सभा की कुल 10 महिलाओं सदस्यों ने ही हिस्सा लिया था । इन महिला सदस्यों में एकमात्र महिला मुस्लिम प्रतिनिधि बेगम एजाज रसूल थी । इसके अतिरिक्त देशी रियासतों से प्रतिनिधि के रूप में एकमात्र महिला सदस्य एनी मस्करीनी थी ।
संविधान पर हस्ताक्षर करने वाले सदस्यों की संख्या
नि:संदेह संविधान सभा के द्वारा 26 नवम्बर 1946 तक कुल 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में संविधान निर्माण का कार्य पूरा कर लिया गया था । लेकिन इस संविधान सभा का अस्तित्व 3 वर्ष 1 माह और 16 दिन यानी 24 जनवरी 1950 तक रहा था । सविधान सभा के इस अंतिम अधिवेशन में संविधान पर हस्ताक्षर करने वाले कुल सदस्यों की संख्या 284 थी । आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि दशरथ मुहानी संविधान सभा के ऐसे सदस्य थे जिन्होंने संविधान निर्माण में तो हिस्सा लिया लेकिन अंतिम रूप से संविधान पर उन्होंने यह कहते हुए हस्ताक्षर करने से मना कर दिया कि मैं ऐसे सविधान को नहीं मानता ।
संविधान सभा मे अल्पसंख्यक समुदाय की सदस्य संख्या
संविधान निर्माण में अल्पसंख्यक वर्ग का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है । जिन अल्पसंख्यक सदस्यों में मुस्लिमो की संख्या 30, ईसाइयों की 07, आंग्ल भारतीयों की 03 ,अनुसूचित जाति की 33, अनुसूचित जनजाति की 05, सिखों की 05 ,पारसी 01 तथा 3 नेपाली सदस्य थे ।
अन्य संख्यात्मक आंकड़े
* संविधान सभा में आंग्ल भारतीय सदस्यों की कुल संख्या 3 थी । इन तीनो सदस्यों में से एक सदस्य फ्रैंक एंथोनी संविधान सभा के पहले मनोनीत उपसभापति थे ।
* संविधान सभा की पहली बैठक में जिन 211 सदस्यों ने हिस्सा लिया था उनमें से महिला सदस्यों की संख्या केवल 9 थी जबकि संविधान सभा में कुल महिला सदस्यों की संख्या 15 थी।