अपनी एक सुंदरतम पर्ण कुटीर बनाएंगे,
घास पूस पत्तो से उसको खूब सजायेंगे!

घर पर सनातन प्रतीक पताका फहराएंगे,
रोशनी को कुटिया में घी का दीप जलाएंगे!

सुरभि धेनु के गोबर से आँगन लिपवाएँगे,
हिरमिच पाण्डु से बिजनी मांडणा बनाएंगे !

प्रवेश द्वार मध्य प्रथम वन्दे गणेश विराजेंगे ,
हरे तामूल पत्र सजे मङ्गल कलश सजायेंगे!

शंख चक्र गदा पद्म स्वस्ति रामायुध बनाएंगे,
शुभ लाभ रिद्धि सिद्धि मंगल चिह्न उकरेंगे !

कुटिया के दोनों ओर राम गोखडे बनवाएंगे,
प्रहरी रण बांकुरों की पोशाक में तैनात होंगे!

अशोक कदली करीर चम्पा बिरवा उगाएंगे
तुलसी की सुन्दर बन्दनवार झूलती लगाएंगे !

कुटिया के बाहर एक चबूतरी निर्मित होगी,
बणी ठणी चित्ताकर्षक भिति चित्र बनाएंगे !

बगल में छान छप्पर गो बछिया की बनाएंगे,
चारे पानी की व्यवस्था अच्छे से करवाएंगे !

गोधूलि वेला रंभाती लंबे डग भरती आएगी,
पय भार थन भूमि नमित अवलम्बित मानो !

रथ सजी गाड़ी बैलों के गले में घूँघरु बाजे,
बैठ झरोखे गोरी झीने पट पथिक को ताके !

पर्णकुटी के चौबारे में मूज की खटिया होगी,
शीतल कूप जल झारी पे लुटिया रखी होगी!

राह से गुजरते पथिक के हलक तर कर देंगे!
लम्हा पथिक से बतिया कुशलक्षेम पूछ लेंगे!

पनघट छवि बड़ी निराली मन में उठे हिलोर,
छम- छम पनिहारी लहराती नदी तरंग सी !

पनघट पर रस बात करी मुस्काती सखियाँ,
झुण्ड में उड़ती मानो रंग बिरंगी तितलियां!

घR के पीछे खेत उसमें लगे अमुआ के पेड़ ,
चंपा चमेली मोगरा गुलाब केतकी जूही बेल !

केसर क्यारी शीतल मन्द महकी बहे बयार,
पराग पान लोलुप फूलों पर मंडराते मधुकर!

उपवन मोर पपीहा पिक गीत प्रेम के गाएंगे, मेघ गर्जन दामिनी दमकत मन प्रमुदित होंगे!

पखेरुओं के चुग्गे को चुग्गा पात्र रखवाएँगे,
प्यास बुझाने को हर डाली परिंडे बन्धवाएँगे!

बारिश की पहली नन्ही बूंद सोंधी धरा होगी,
कंधे पर हल खेत जोतने जाते हलवाहे होंगे!

ताल तलैया जल भरे खिले सुवासित कमल, जलचर अटखेलिया करते चुगते मुक्ताफल!

ग्राम बधुओ के कल कंठ गीतों की झंकार,
मन्दिर में शंख घड़ियाल झालर की टंकार!

पूनम धवल चांदनी तारों भरी यामिनी होगी ,
नयन निर्निमेष अगणित निहारिका निहारती!

सृष्टि सृष्टु अद्भुत कल्पना उद्विग्न हो रहा मन,
ऊर्ध्व फलक झूले क्षिति व्योम पलक मिलन!

इक थाल मोतियों भरा सबके सर उल्टा धरा,
विधिना की करनी एक भी मोती नही गिरा!

उल्का पिंड टूट सरपट असीम गति भागते,
शरद चांदनी में बालवृंद लुका छुपी खेलते!

भोर का तारा उदित चहुंओर फैला उजियारा,
पर्ण कुटिया रामधुन गूंजी जागा जग सारा!

राधा कृष्ण युगल छवि वन जाते राम सिया,
मोरे भाग जगे एक दिन पर्णकुटी में आएंगे!
@ गोविन्द नारायण शर्मा


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